Dreams

Monday, August 2, 2010

श्रावन मॉस में कार्तिक Copyright ©


सावन के रंगों को तो सबने देखा है

मल्हार की ताल पे मदमस्त मोर को

थिरकते तो सबने देखा है

गर्मी की थकान तो पहली बूंदों में नहा के

सबने मिटाई है

चाय की चुस्कियों के साथ बरसात की शाम तो

सबने बिताई है

गरजते मेघो पे सबने टकटकी लगायी है

बूंदा बांदी से लेकर मूसलाधार होती

बारिश में सबने आत्मा भिगायी है

पर कोई मेरे अन्दर छुपे सैलाब को नहीं देख पायेगा

आंसुओं के बाँध को छुपा के रखने की तरकीब

कोई नहीं समझ पायेगा

मैं भी इस बहार में नहाना चाहता हूँ

मेघ मल्हार का राग़ सुनना चाहता हूँ

पर नम हैं आखें, मन घबराया है

मेरे परम मित्र की अंतिम यात्रा का भार

मन में समाया है

जो कहता मुझसे…रह स्थिर..संभाल

बन्धु बांधव की बन जा ढाल

बरसने दे मेघों को ,थिरकने दे मोरों को

तू संयम का बस पुल बाँध



बरसात तो अगले बरस फिर आएगी

फिर एक बार धरती की सूखी छाती

भीगा जायेगी

लेकिन

तेरी अश्को की नदी पे जो तेरा बांध है, आज टूटा तो

पता नहीं कितनो को बहा ले जायेगी

तो मैं बाहर से संभला हूँ

पीड़ा किसी को दिखने न पाए

अपनों ने जो सर रखा है कंधे पे

वो कन्धा कभी झुकने न पाए

मेरे परम मित्र तुझे नमस्कार

तेरी शक्ति से ही है यह छाती तनी

तेरे विश्वास से ही है यह काया खड़ी

तेरी मित्रता की पवित्रता का ही है सहारा

तू जो सिखाना चाहता था.

तू नहीं है हारा

भिदी छाती है तो क्या हुआ, हम तेरा परचम

लहराए अभी खड़े हैं

पैर लडखडाये तो क्या , तुझे न्याय दिलाने को

हम यहीं डटे हैं

घबरा मन, निराश न हो हम सारी पीड़ा हर लेंगे

सबके दुःख अपने माथे मढ़ लेंगे

तू बस मुस्कुरा और वहां बैठे ईश को

भी अपनी मुस्कान से गौरान्वित बना



खालीपन की न हम बात कर रहे

तेरे प्यार की दया से अपनी झोली भर रहे

तेरे ह्रदय से निकले हर भाव की

बारिश में हम भीग रहे

तेरी मित्र निष्ठां की छाया को

छत्री बना ली हमने

और तेरी स्मृति को मोर बना दिया हमने

तो आ थिरक, नाच, बरस

गाले मल्हार और छेड़ साज़

हम हैं तैयार भीगने को

एक बार पुनः इस बंजर आत्मा को

सींचने को

यह सावन के झूले हम तेरी

मित्रता को बनायेंगे

औरों को वो स्नेह पहुँचायेंगे

और ऊंची पेंग बढ़ाएंगे

आजा झूमे हम

कर लें मन पावन

देख मित्र आया सावन

हमारी दोस्ती का सावन

तेरा-मेरा सावन

सावन!

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