सफलता का एक मापदंड है जीत
जीत का मापदंड है औरों से आगे बढ़ना
जीवन स्पर्धा में एकदम आगे निकलना
पुरूस्कार, थपथपी, और फूलों की माला
प्रथम की श्रेणी में हरदम आना
जीत का सेहरा पेहेनना
और वाह वाही लूटना
बहुत हैं आप में से ऐसे जो
हर पड़ाव पे जीतते हैं
जो हरदम जीत का जाम पीते हैं
पर उस जाम की मादकता का पूरा
आनंद नहीं ले पाते
क्यूँकी हर जीत तभी सार्थक होती है
जब उसकी नीव हार पे टिकी हो
जब तक मूह की न खायी हो
तब तक चेहरे का तेज
झलकता नहीं
जब तक पराजय न पायी हो
तब तक विजय का सहारा
चमकता नहीं
जब तक स्पर्धा में कोई हो न साथ
तब तक विजयी कैसे कहलायेगा
हार का "हार" न पहना कभी तो
जीत की "तीज" कैसे मनायेगा
हार से इतना भय क्यूँ
उसके होने पर कौतुहल क्यूँ
हार तो जड़ है
हार तो स्तम्भ है
हार तो जीत का भ्रूण है
अंकुर है जो प्रस्फुथित हो
तभी जीत का पौधा खिले
यदि सुगंध ही सुगंध सूंघी हो
तो उसे कैसे अद्भुत नाम दोगे
जब तक दुर्गंद से उसकी तुलना न की
तब तक कैसे उसका मान दोगे
यदि हमेशा जीते हो तो
कैसे ज्ञात होगा की वो सार्थक है
जब तक हारे नहीं तब तक
उस जीत का ध्वज कैसे लहरेगा
जब तक हारा नहीं तो सीखेगा कैसे
बेजान पत्थर सी जीत को
परिश्रम से सींचेगा कैसे
यदि पूरा गीला हो जीत में
तो नयी बूंदों में भीगेगा कैसे
जब तक स्पर्धा में कोई हो न साथ
तब तक विजयी कैसे कहलायेगा
हार का "हार" न पहना कभी तो
जीत की "तीज" कैसे मनायेगा
हारे तो मत घबरा
जीत का सेहरा निकट है
लडखडाये तो मत शरमा
विजय ध्वज होने वाला प्रकट है
झेंप मत उस हार से
वो तो तेरे व्यक्तित्व पे
अलंकार है
तेरे निरंतर उत्थान का
एक मात्र प्रमाण है
कहते हैं कि जीवन में
वो लोग नहीं विजयी कहलाते
तो आघात करना जानते है
जीत ते है वो हैं जो
उन आघात को झेलके भी आगे बढ़ते है
तो हार से मत घबरा
केवल जीत को मत ललचा
जब तक स्पर्धा में कोई हो न साथ
तब तक विजयी कैसे कहलायेगा
हार का "हार" न पहना कभी तो
जीत की "तीज" कैसे मनायेगा
हार का "हार" न पहना कभी तो
जीत की "तीज" कैसे मनायेगा
हार का "हार" न पहना कभी तो
जीत की "तीज" कैसे मनायेगा
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