मानवता का कोई
रंग नहीं होता
कोई सम्प्रदाय
कोई ढंग नहीं होता
उसे जताने का कोई
बहाना नहीं होता
एक छोटी सी अभिव्यक्ति मानवता की
हो जाए तो दुसरे मानव
की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं होता
मानवता की कोई दिशा नहीं होती
सरहदें नहीं होती
समय, काल, परिस्थिति नहीं होती
मानवता तो ब्रह्म है
जो हर मानव के लहू में है दौड़ता
सर्वस्व , ब्रह्माण्ड में
होनी चाहिए मानवता
वो किसी की मोहताज नहीं होती
विलुप्त हो गयी मानवता इस जहां से
भाई, भाई को मारे और
तान के सो जाए चादर
अपराध करे और
गंगा नहाके धो लें अपने पाप
ग्लानि भी न होती आज
दूर की बात है पश्च्याताप
मानव ने स्वयं ही
मानवता का गला घोंट दिया
बलात्कार करके, समय और युग
पे उसका दोषारोपण किया
अरे “उस” की मूरत है मूर्ख मानव
ऐसा करके कब तक बच पायेगा
मोक्ष की प्राप्ति के लिए हरदम उत्सुक
ऐसे मैलेपन से उसमे कैसे मिल पायेगा
देख प्रतिबिम्ब अपना दर्पण में
क्या पहचान तू अपने को पायेगा
ऐसा धूर्त हो गया तू
स्वर्ग को छोड़
नर्क में भी स्थान न ले पायेगा
जिनकी मानवता लुप्त हो चली उनकी तो
क्या बात करें
जिनमे थोड़ी बहुत बाकी है
वो भी चुप्पी साधे हैं खड़े
हत्यारे वो भी हैं क्यूंकी
कंठ से उनके बोल न फूटें
उनके हाथ भी लहू से उतने ही लाल हैं
क्यूंकी अन्याय को देखके मूक हो जाना
तो उस से बड़ा पाप है जो करते हैं झूठे
हत्यारे मानवता के , एक दिन
हत्यारे न कहलाएँगे
क्यूंकी एक दिन मानवता मृत हो जाएगी
और मानवता हीन ही मनुष्य मन जाएंगे
इस से पहले पिशाच भ्रमण करें इस धरती पे
झाँक के देखे अपने भीतर
मानवता का स्तर कहीं गिर तो नहीं रहा
कहीं वो हलकी सी परत जो है अन्दर
वो कहीं चिर तो नहीं रहा
और यदि ऐसा है तो झक्झोड़ो
खुद को , जगाओ भी
सोचो और समझाओ भी
सिर्फ मानवता ही है जो
पशुओं से करती है अंतर
वो स्थाई है वो ही इश्वर
जो है बैठा सबके अन्दर
जागो मानव
जगाओ मानवता
सारी सीमा लांघे वो
भला किसी का न भी हो तुमसे तो
बुरा तो ना ही करो
उस चेतना उस पहचान को न खोने दो
वो ही शिव है वोही विष्णु
उस ब्रह्म को न खोने दो
हे मानव इस मानवता को
अभिशाप नहीं वरदान होने दो
हे मानव
मानवता न खोने दो
मानवता न खोने दो
मानवता न खोने दो!
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