Dreams

Thursday, August 4, 2011

और मैं..चला गया! Copyright ©


मुश्किलों में मैं मुस्कुराता चला गया
थकान को हर बार छुपाता चला गया
मुरझाया फूल , मृत्यु के बाद भी महकता ज़रूरा है
बस उस सुगंध को ही हर ओर मैं फैलाता चला गया !




अपने अश्क, अपनी सिसक को मैं दबाता चला गया
मुस्कान अपने चेहरे पे सजाता चला गया
जगमगाते सूरज के जलने का दर्द तो केवल सूरज ही जाने
मैं उस सूरज की तरह जग चमकाता चला गया


अपने जीवन को औरों का कंधा बनाता चला गया
बेवकूफ़, निमित्त मात्र, कहलाता चला गया
रिश्तों नातो और भाईचारे में बस दागा ही पाई मैने
फिर भी दुश्मनो को गले लगाता चला गया


कई सूखी शाखों को मैं लहू से अपने भिगाता चला गया
उनके पतझड़ हो रहे जीवन में बहार लाता चला गया
मौसम की तरह आया और गया मैं उन सबके जीवन से
खुश्क,पीलेपन पे उनके, हरियाली बस चढ़ता चला गया


बहते समय में मैं, जीवन बहाता चला गया
कई नदियों को मैं सागर के जैसे समाता चला गया
वो नदियाँ तो जाके सागर से मिल आतीं और मोक्ष पा जातीं
वो मैं था जो उन नदियों पे पुल बनाता चला गया


नशे में डूबी दुनिया को मैं अपना लहू पिलाता चला गया
जाम ख़त्म होते सबके तो मैं नये जाम बनाता चला गया
सब मय में झूम , झूम मदिरा की तारीफें करते रहे
और मैं साकी बनके बस उनको उनकी मादकता का एहसास कराता चला गया

और मैं..चला गया!

No comments: