किस ओर है देश अग्रसर , किस ओर है भारत की नज़र
किस मुक़ाम पे पहुँचना है हमको, क्या होगी हमारी डगर
आज़ादी की शाम ना होने देने की कसम हमने खाई थी
इस 'आज़ाद' भारत का कैसा होगा अब सफ़र
जो बो दिया है बीज, उसके फल तो हम काटेंगे
चौसठ साल के इतिहास का वर्तमान तो हम बाँटेंगे
यदि आज अच्छा नही है तो, यह बीज पुराना था
इसीलिए तो हमको, प्रेम का फूल ही बस उगाना था
आतंकी शाखें जो आज खिली हैं
भ्रष्टता की जो जागीर मिली है
वो कल की गैर- ज़िम्मेदारी है
यह बीते कल की कालिख, बीते कल की बीमारी है
इस कवि , इस अभिव्यक्ता ने आज यह तस्वीर इसलिए उतारी है
क्यूंकी कल के भविष्य का बोझ, उसके हृदय मे भारी है
संकल्प तो हमने हर बरस इस दिन लिया था,
पर अगले क्षण ही भारत मा को नीलाम किया था
यदि कल भारत का परचम हमे विश्व भर में लहराना है
तो उस कपड़े का तार तार हमे आज से बनाना है
जो कल हमको सोने की चिड़िया फिर स्वर्ण बनानी है
हमको आज से हर उसके पिंजरे को तोड़ जाना है
पौधा उगाना है कल का, उस पौध को यदि लहलहाती फसल बनाना है
तो इस आज़ादी की हो रही शाम पर
सुनेहरा सूरज चमकाना है
तिरंगे के रंगो पे नया रंग चढ़ाना है
सोए भारत को इस 15 अगस्त हमे ऐसे आज जगाना है
ज़य हिंद!!!
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