तख्त-ओ-ताज मिट जाएँगे,खो जाएगी यह कायनात
सियासतें लुट जाएँगी , लूट जाएगी हर शतरंज की बिसात
पर याद रहे हरदम हरपाल,भूले ना यह सच कभी
रह जायगी उम्मीद, जैसे सूरज रौशन करता हर गहरी रात
काली रात के साए का डर निरंतर चला आ रहा
सब खो जाने का डर सदियों समय के साथ बहा
भयभीत निगाहें , काँपती बाँहें हर बार यह कह देती है
जो झेल गया समय, किस्मत और परिस्थिति की मार,
उसे ही इतिहास ने हरदम बादशाह कहा
जो तेज नही है, और ना है कुछ करने की कूबत
ना है ताक़त हर मार को सह जाने की , चाहे जिस भी सूरत
उस तख्त पे नज़र ना डाल, ना उस ताज का बना सेहरा
तू तो है एक निर्जीव, ज़ीवट रहित, एक बेजान मिट्टी की मूरत
तलवार की धार पे चलने की हिम्मत जो कर पाएगा
वो ही इतिहास में अंकित होने का दर्ज़ा ले जाएगा
चाहे समंदर की ऊँची लहरे तुझे डुबाने को हो तय्यार
उन्हे चीर कर ही तो सुनेहरी रेत, जगमगाता भविश्य पाएगा
रोक ना तू अपनी बाहों में दौड़ते लहू को
ना रोक दिल में उफनते तूफान को
मौत से पहले यारी कर तू
फिर कहीं जाके संभाल अपनी जान को
तो निकल अपने मखमली राज महल से, दे ज़िदगी को ललकार
पतझड़ और ग्रीष्म के बाद ही आती है हरदम बहार
कांटों से ना छिल गया कभी तो गुलाब कैसे चुन पाएगा
मौत भी तेरी ऐसे हो कि अरथी तेरी ले जायें कहार
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