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अंगद बन बन जब जब मैने
रख दिया धम्म से पाँव
तब तब डगमगाई डामाडोल
शत्रुओं की नाव
जो किसी चीज़ के लिए नई रह पाएँ खड़े
उन्हे हर चीज़ मुग्ध कर पड़े
अंगद हुआ मन तब ही मैं कुछ फ़ैसले ले पाया था
नही तो मेरा भी जीवन केवल एक साया था
जब मेरा संकल्प अंगद हुआ तब ही मैं
सब सपने सच कर पाया था
तभी मैं अपने जीवन के चित्र्फलक को
इन रंगो से रच पाया था
बन जाओ अंगद, रख दो अपने पाँव गढ़ा के
हिला ना पाए आँधी तूफान जहाँ में
होने दो हर किसी का प्रयास निरर्थक
जहाँ गढ़ा हो पाँव तेरा, अमृत धारा जन्मे वहाँ पे
अपने संकल्प से तुम बदलो यह जग
तुम बदलाव हो जाओ इसका
घोर साधना , से अपने विचार के पारंगत हो जाओ
धरो पाँव ऐसा तुम भी, तुम भी अंगद हो जाओ!!!
1 comment:
- p.s.
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