Thursday, July 28, 2011
सालों साल Copyright ©
महीना बीता, फिर बरस ,फिर एक युग हो चला
तुझे स्मरण करने का समय कहाँ मिला
समय कहाँ मिला आँसुओं को छलकाने का
कहाँ मिले लोग जिन्हे मन किया गले लगाने का
तेरी हसी को याद ना किया
तेरी पवित्रता को फूल ना चढ़ाए
तुझे क्या बताउन मेरे मित्रा, मेरे भाई
तुझे तो पता है मेरे दिल का हाल
तेरी याद नही आती मुझे सालों साल
तेरी याद नही आती मुझे क्यूंकी हरपाल मैं तुझे जीता हूँ
तुझे कभी पुष्प नही चढ़ाए मैने
क्यूंकी तेरा चरणामृत मैं रोज़ पीता हूँ
तेरी मा, तेरी पिता और भाई बहिन को मिल नही पाया
कहीं उन्हे तेरी याद ना आ जाए, इसीलिए तेरा गाना नही गाया
याद तो उनकी आती है जिन्हे हम भुला पायें
जो तुम्हारे अंदर रहते हैं ईश समान उन्हे कैसे भुलायें
तेरी हसी अपना ली मैने
तेरी चाल भी की धारण
तुझ जैसा बन पाउन , बस इस कारण
पर तेरे हृदय से तुलना कैसे करूँ
कैसे उस पवित्रता को समाउन
बस तू रह मेरे हृदय में
कि मैं तुझ जैसा बन पाउन
सालों साल बीतेंगे
सालों साल हम जीतेंगे
सालों साल तू साथ दौड़ेगा मेरे
तेरी लालिमा से मैं जग रौशन करूँगा
तेरी हसी से ब्रह्मांड चमकाऊंगा
तेरे धैर्या से शांति संदेश पहुन्चाउन्गा
तेरे शौर्या से कायरता मिटाऊंगा
तेरी ऊर्जा से सजाऊंगा अपने जीवन की थाल
युगों युगों, सालों साल
युगों युगों, सालों साल
युगों युगों, सालों साल
Wednesday, July 27, 2011
क्यूँ तोल मोल के बोल?? Copyright ©
पोथी पढ़ पढ़ लिए सुझाव
ज्ञान से भर दी अपनी नाव
पर बोले बिना तोल मोल के तो
ना जाने कितने हृदयों को दिया घाव
सीख दी बड़ों ने , समझाया भी
एक बार तीर जो निकले कमान से
वापिस नही आ पाते हैं
तोल मोल के ना बोला प्यारे तो
बोल तुम्हे ही खा जाते हैं
पर अड़ियल गधे के जैसे मैने
उस सोच को नकार दिया
तोल मोल के बोलना ना सीखा
और उद्दंड खुद को करार दिया
वाणी निकले कंठ से तो हरदम
मधुर ध्वनि होनी चाहिए क्या?
मीठेपन से देखो कैसे सियासतें लुट गयी
खरी नही बोलनी चाहिए क्या?
नाप तोल के हर बार हर कदम जो रखे मैने
जी कहाँ पाया था
खुली साँस और फैले पाँखो के बिना
आखश का अमृत कहा पी पाया था
तोल मोल के बोल बोल के थक गया मैं
कभी रोका समाज ने ,कभी संस्कारों ने लगाई लगाम
बोलने पे भी शुल्क लग गया
बिना नाम के ही हुआ बदनाम
इस से अच्छा तो मैं बोल लूँ पहले
मान में जो जो है आता
जिसे अच्छा लगे वो होले पीछे
मुड़ जाए जिसे यह भाव नही भाता
उद्दंड और स्वतंत्र होने मे फ़र्क है भाई
योगों युगों से है यह ही लड़ाई
उद्दंड ने माँगा नही , छीन लिया
स्वतंत्र ने माँगी स्वेच्छा ,बस अपनी नही चलाई
तो स्वतंत्र हूँ तो क्यूँ ना बोलूं
अपने विचार क्यूँ ना खोलूं
क्यूँ परिमाण में जकड़ा जायुँ
क्यूँ उसमे भी सबका होलूं
हृदय में आए जो तो बोल ने मे क्या रोक
हर दम देता रहूं इन सबको क्या धोक
फिर घर जाके शीशा देखूं
और बंदी बने खुद पे मनाउन शोक?
क्यूँ बजाएँ उनका ढोल
क्यूँ ना बाहें तू खोल
क्यूँ जकड़े रहें शब्द परिमाण से
क्यूँ तोल मोल के बोल??
Tuesday, July 26, 2011
क्या जिए Copyright ©
मदमस्त हाथियों से ना नाचे
तो क्या जिए
तलवार की धार पे ना चले
तो क्या जिए
जीवन के जाम ना पिए
तो क्या जिए
मुश्किलों को गले ना लगाया
तो क्या जिए
अपनी ज़िंदगी किसी के हाथों मे ना दी
तो क्या जिए
कड़वाहट का रसास्वादन ना किए
तो क्या जिए
जंगली घोड़ों के साथ ना दौड़े
तो क्या जिए
रीति रिवाज़ ना तोड़े
तो क्या जिए
छलकते आँसू ना पिए
तो क्या जिए
मोरों की थिरकन पे ना थिरके
तो क्या जिए
मल्हार की ताल पे रह गये डरके
तो क्या जिए
डर ना लगा किसी से, ना मानी हार
तो क्या जिए
हार के ना जीते तो
क्या जिए
नाम ना हुआ तुम्हारा
तो क्या जिए
वो नाम बदनाम ना हुआ तुम्हारा
तो क्या जिए
जीवन ना उधड़ा तुम्हारा किसी के नाम पे
तो क्या जिए
उधड़े धागों को ना सीए
तो क्या जिए
चमकती ज़िंदगी के बाद ना देखे घनघोर अंधेरे
तो क्या जिए
उस अंधेरे मे ना तुमने जलाए हौसले के दिए
तो क्या जिए
हृदय के तार ना तुमने छेड़े किसी से
तो क्या जिए
ना हुए वो तार आज़ाद पखेरे
तो क्या जिए
सिंघों की मांड में जाके ना दहाड़े
तो क्या जिए
हर बार किस्मत के लिए सहारे
तो क्या जिए
जिए वो जो स्वतंतरा आत्मा से साँस ले
जो खुल कर अट्टहास दे
जीवन की धारा के विपरीत बहने का जो दम भरता हो
जो इतिहास के कलन्किन्त किरदारों से ना डरता हो
कीड़े मकोड़ो से रौंदा ना जाना चाहे
वक़्त के थपेड़ों पे जिसकी खुली हो बाहें
जो हर पल को सराहे
जो जीवन के लिए, प्रेमिका सी भरे आँहें
जो हर घूँट को अंतिम घूँट सा पिए
वो जिए
वो जिए
केवल वो जिए
Monday, July 25, 2011
छटम तत्व Copyright ©
पंच तत्व से बनी यह काया
पंच तत्व में मैं समाया
भू, अपो, तेजो,वायू ,और आकस
पर एक और तत्व की मुझे तलास
एक भिन्न स्पंदन की अनुभूति
हर पल, हर क्षण मुझे है होती
मस्तिष्क मंथन , आत्म मंथन
बुद्धि का उपयोग , एक अनूठा स्पंदन
भीतर की गुर्राहट, सन्नाटे की सरसराहट
एक ऊर्जा, एक ध्वनि
एक स्वाद, एक स्पर्श, एक हर्ष
क्या? छटा तत्व?
एक अकलंकित सत्व.
वो सत्व जो जीवन है शायद
वो सत्व जो समाया है भूमंडल में
जो आकाश में रहके रहता अदृश्या
वो जो भूत में है और बनाता भविष्या
वर्तमान की काया रचता जो
मेरी काया गढ़ता जो
कम्ल के पत्तों सा स्वच्छ
जिसपे शबनम की बूँद लेटी हो विलासी
जिसे फ़िक्र भी ना हो ज़रा सी
वो तत्व जो जीवट है
वो सत्व जो अप्रकट है
जिसकी अनुभूति की है बस जाती
जैसे निर्मल दिया की जलती बाति
आत्मां से अलग
परमात्मा से परे
जिससे यह मानव है डरे
वो तत्व क्या है
इस खोज में निकला मैं
कहाँ तक, कब तक नही ग्यात
अभी तो है केवल शुरुआत
शब्द जिसका वर्णन का कर पायें
श्लोक जिसका गणनन ना कर पायें
सुगंधें जिसे रोक ना पायें
उजाले जिसको ना कर पायें उजागर
ना समा पाए यह नीला सागर
आकाश जिसे ना ऊढा पाए नीली चादर
राग जिसे गा ना पायें
फव्वारे जिसे भिगो ना पायें
दरिया जिसे डुबो ना पायें
क्या, कौनसा तत्व
कौनसा यह सत्व
वो छटवाँ तत्व है विश्वास
पंच तत्वों के मिश्रण का आभास
अद्रिश्य, आलोकिक,अनुपम विश्वास
आत्मा और परमाता का मिलन
सारे तत्वों का मिश्रण, उनका सहवास
बस यह ही जीवन , यह ही ऊर्जा, यह शी शक्ति , यह ही शिव
बस विश्वास,
विश्वास ही है जिसे सब हैं ढूँढते
ना ईश, थे मोक्ष ना और कोई एहसास
केवल विश्वास
बस विश्वास
केवल विश्वास
Friday, July 22, 2011
स्वप्न कोष Copyright ©
मेरे शब्द-कोष की तारीफें इतनी
पाई हैं हर मोड़ पे
कभी हसाया, कभी रुलाया
बहुतों को हर छोर पे
पर मेरा स्वप्न-कोष है जो भीतर मेरे
उसके भी भागीदार हो जाओ
खुली आँखों से स्वप्न संजोयो
स्व-कामना के जागीरदार हो जाओ
स्वप्न देखना जिन्हे लगे है नकारात्मक
सकारात्मक ना उन्होने कुछ इस जीवन में किया
तक़्दीरो के हाथों बिक गये हैं और
जीवन ना उन्होने खुल कर जिया
स्वप्न ना संजोयें हो जिन्होने , वो जन्म लेते ही
आगंतुक मृत्यु को देते निमंत्रण
सब्ज़ी सी ज़िंदगी जी जाते
जीवन के तवे पर करते आत्मा-समर्पण
बंद आँखो से सपने देखो
उठके उनको करलो पूरे
मृत्यु शय्या पे हो जब लेटे
रहे ना कोई भी अधूरे
स्वप्न कोष हो इतना अंदर की हर दिन नया सपना देखो
हर दिन उसको पूरा करलो , उस सपने की गरमी सेको
हर दिन जुड़ जाए एक नया स्वप्न तुम्हारे कोष में
ऐसे पियो स्वप्न-अमृत, रहो ना कभी होश में
चाहे कहे तुझे यह जग शेख चिल्ली
तुम अपने पूरे करने के प्रयास में बहना
दूर नही है दिल्ली , का नारा
सबके मूह पे जाके कहना
अपनी जीवन थाल को सोने जड़ी तश्तरी होने दो
वो सोना होने दो जीवन प्रवाह और मोतियों को सपने होने दो
जो तुम्हारे सपने देखने पे चीखते चिल्लाते हैं उन्हे तुम रोने दो
पर उनकी चीखों की गूँज में अपने सपनो के मृदंग की ध्वनि ना खोने दो
बादल बनाओ मन में और तेर आओ
सागर को पूरा पी जाओ
सूर्या को निगलो और ज्वाला मुखी हो जाओ
हर सपना हो ऐसा अद्भुत जिसकी कल्पना भिन्न हो , हो परे
स्वप्न देखने से तुम्हारा चित्त, कभी ना डरे
मैने सपना देखा था, अपने शब्दों से जग जीतने का
लोगों के हृदय को अपनी कल्पना से भेदने का
मेरे विचारो की बरखा से मानवता को भीगने का
कुछ सिखाने , कुछ सीखने है
और वो कुछ कुछ अब सच हो रहा है
आप इसे पढ़ रहे हैं और सपने बुन रहे हैं
मेरे स्वप्न कोष में आप जुड़ रहे हैं
आओ अखंड मानवता का स्वप्न देखें
उसे सबको अवगत करायें और एक दिन उसकी गरमी सेकें
आपका स्वप्न कोष, मेरा स्वप्न कोष
हमारा स्वप्न कोष बढ़ायें
पूरे करें , और इतिहास रच आयें!
पाई हैं हर मोड़ पे
कभी हसाया, कभी रुलाया
बहुतों को हर छोर पे
पर मेरा स्वप्न-कोष है जो भीतर मेरे
उसके भी भागीदार हो जाओ
खुली आँखों से स्वप्न संजोयो
स्व-कामना के जागीरदार हो जाओ
स्वप्न देखना जिन्हे लगे है नकारात्मक
सकारात्मक ना उन्होने कुछ इस जीवन में किया
तक़्दीरो के हाथों बिक गये हैं और
जीवन ना उन्होने खुल कर जिया
स्वप्न ना संजोयें हो जिन्होने , वो जन्म लेते ही
आगंतुक मृत्यु को देते निमंत्रण
सब्ज़ी सी ज़िंदगी जी जाते
जीवन के तवे पर करते आत्मा-समर्पण
बंद आँखो से सपने देखो
उठके उनको करलो पूरे
मृत्यु शय्या पे हो जब लेटे
रहे ना कोई भी अधूरे
स्वप्न कोष हो इतना अंदर की हर दिन नया सपना देखो
हर दिन उसको पूरा करलो , उस सपने की गरमी सेको
हर दिन जुड़ जाए एक नया स्वप्न तुम्हारे कोष में
ऐसे पियो स्वप्न-अमृत, रहो ना कभी होश में
चाहे कहे तुझे यह जग शेख चिल्ली
तुम अपने पूरे करने के प्रयास में बहना
दूर नही है दिल्ली , का नारा
सबके मूह पे जाके कहना
अपनी जीवन थाल को सोने जड़ी तश्तरी होने दो
वो सोना होने दो जीवन प्रवाह और मोतियों को सपने होने दो
जो तुम्हारे सपने देखने पे चीखते चिल्लाते हैं उन्हे तुम रोने दो
पर उनकी चीखों की गूँज में अपने सपनो के मृदंग की ध्वनि ना खोने दो
बादल बनाओ मन में और तेर आओ
सागर को पूरा पी जाओ
सूर्या को निगलो और ज्वाला मुखी हो जाओ
हर सपना हो ऐसा अद्भुत जिसकी कल्पना भिन्न हो , हो परे
स्वप्न देखने से तुम्हारा चित्त, कभी ना डरे
मैने सपना देखा था, अपने शब्दों से जग जीतने का
लोगों के हृदय को अपनी कल्पना से भेदने का
मेरे विचारो की बरखा से मानवता को भीगने का
कुछ सिखाने , कुछ सीखने है
और वो कुछ कुछ अब सच हो रहा है
आप इसे पढ़ रहे हैं और सपने बुन रहे हैं
मेरे स्वप्न कोष में आप जुड़ रहे हैं
आओ अखंड मानवता का स्वप्न देखें
उसे सबको अवगत करायें और एक दिन उसकी गरमी सेकें
आपका स्वप्न कोष, मेरा स्वप्न कोष
हमारा स्वप्न कोष बढ़ायें
पूरे करें , और इतिहास रच आयें!
Tuesday, July 19, 2011
JOB OPENING!!!!
JOB OPENING!!!!
"Company" name : Lashkar-E-Taiba
Posting ID : AK47-AK56
Basic Requirements : Religious fanatic ( wont mention which one ), must have his/her family butchered to death, sister raped, and been raised in a very mediocre setting with absolutely no food to eat from time to time. Must have killed at least 5 by knife, 50 by guns and at least 250 in bomb blasts. Must have diploma in Indian historical weakness and political debauchery ( on-site training will be provided ).
Training Period : 4-5 years of on-site training, in bomb making, camouflaging and negotiation with the Indian Govt.
Compensation : 10 million dollars in a numbered account in a Swiss bank of choice, free food, lodging & boarding, International travel, GUARANTEED TV coverage for at least 2 months, Guaranteed safe-house in Indian Jails, if caught.
Job Duties : - Project management
- Negotiations with the Indian Intelligence
- Bomb plantation
- Explosions
- Killing Innocent people and laughing at the Indian Intelligence and Government
- Repeated attacks
- NOT TO GET CAUGHT.
Please send in your resume's to www.bomb-Indians-then-laugh-
For further information visit:
www.repeatedly-bomb-Indians-
www.hindustani-humaara-kuch-
Sunday, July 17, 2011
अफ़सोस करना नही आता !!! Copyright ©
मुझे अफ़सोस करना नही आता
केवल गुज़रे मौसम पे हूँ मुस्कुराता
पल बटोरता रहता हूँ बस मैं इस ज़िंदगी में
मुझे आज में जीना बस है भाता
क्यूंकी मुझे अफ़सोस करना नही आता
तुम ऊडो आसमान में मेरी जान
जैसे मैं उड़ रहा हूँ आज़ाद पंछी सा
मैं भी रोकू तुम्हे तो ना मुड़ना
कभी ना किसी के लिए छोड़ना उड़ना
पंख फैलने की देर बस है, खुला आसमान
मेज़बान की तरह बाहें फैलाए बैठा है
उसे उसका धर्म निभाने दे
पंख फैला और खुदको नीलिमा में डूब जाने दे
मुझे ज़्यादा कुछ कहना नही आता
क्यूंकी मुझे अफ़सोस करना नही आता
अफ़सोस करें वो जिन्होने कुछ किया ना हो
मैने तो प्याले पिए हैं ज़िंदगी के
अफ़सोस करें वो जिन्होने लम्हों को खो दिया
मैने तो एक एक पल जिए हैं ज़िंदगी के
ऐसा नशा है यह ज़िंदगी
और ऐसी साकी है इसके पल
पूरी उतारे बिना होश करना नही आता
ऐसा डूबा हूँ इसके जाम में
की मुझे अफ़सोस करना नही आता
मुझे अफ़सोस करना नही आता
अफ़सोस करना नही आता
Wednesday, July 13, 2011
सायों से क्या घबराना !!! Copyright ©
सायों से क्या घबराना , वो तो निकटतम रौशनी का प्रतीक हैं
गहराइयों से क्या घबराना, वो तो तुम्हारी ऊँचाई की सच्चाई है
आँसुओं से क्या शरमाना , वो तो पवित्र आत्मा की निशानी है
हार से दुखी ना हो जाना, वो तो तुम्हारे विश्वा विजय की कहानी है
कल्मे सरों को करदो नमन, वो हुक्मरानो के आगे खड़े थे
बैसिखी पे लंगड़ी टाँगो के आगे शीश झुकाओ, वो दुश्मनो के आगे गड़े थे
मसले फूलों की महक को ना भूलो, वो वीर सेनाईयों की समाधि पे पड़े थे
गिरे स्तंभों का ना तुम मज़ाक उड़ाओ , वो तो इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से जड़े थे
बीते भूत से शर्मिंदा क्या होना, वर्तमान ज़िंदा है यहाँ
पुरानी तस्वीरों पे दिल छोटा क्या करना, नये चित्र्फलक को करो जवां
नंगेपन से क्या शरमाना, हमाम मे नंगे हैं सभी यहाँ
अतीत की आँधियों से क्या हिल जाना, विश्वास हमेशा रहे जहाँ का तहाँ
दाग लगे तो लगने दो तुम, चितकबरे ही तो कहलाओगे
उन श्वेत पोषाखों वाले ढोंगियों से तो ना रंगे जाओगे
मढ़ने दो दुनिया को तुम पर इल्ज़ामों की मिट्टी का लेप
याद रखना अपनी चमक से एक दिन तुम पूरे जॅग को चंकाओगे
जब भुजाओं में दौड़े गर्म लहू तो बहने देना उसे, हो जाना तर बतर
सीने में धड़कन जब मृदंग बजाए, बजने देना , हो ना किसी का डर
भले पूरा जीवन गुज़रा हो अंधकार में, जीत होगी तुम्हारे सुबहे के सुनहरे सूरज के पहर
अपनी राह चले चलना तुम , किसी कारण वश ना गिराना तुम अपना स्तर
काश ना कहना कभी, के काश कमज़ोरों की बात है
जो अपने प्यादों पे विश्वास ना रखते , यह उनकी बिसात है
घबराए कदमो से जो चलते रहोगे तो डगमगा ही जाओगे
विश्वास ही हम पे विधाता की सबसे उम्दा सौगात है
विरासतों, रिश्तों के छूट जाने से क्या घबराना, नयी जागीर, नही तो कैसे पाओगे
हाथों से निकलती रेत से क्या घबराना, संग-ए-मरमर के महल कैसे बनाओगे
काले मेघों से क्या घबराना, वो तो मयूर न्रित्य का संकेत हैं
मृत्यु से क्या घबराना, वो भी तो इस जीवन जैसी सचेत है
मेरे कड़वे शब्दों से क्या घबराना, वो तो अंधेरे मे रौशन दिए से हैं
मेरे विचारों , मेरी कल्पना से क्या घबराना , सब तुम्हारे हित के लिए हैं
मेरे उद्दंड होने से क्या घबराना, मैने तो हार जीत के स्वाद दोनो चखें हैं
मेरी कविता से क्या घबराना , वो तो तुम्हारी ही चीखें हैं!!!
Monday, July 11, 2011
बड़ा है तो बेहतर है??? Copyright ©
Tuesday, July 5, 2011
झील के किनारे...मिल गयी ज़िंदगी !! Copyright ©
झील की खामोशी और शाम का नशीलापन
क्षितिज पर मासूमियत फैली हुई और
उम्मीदों का नीलापन
ऐसा गुजरा कुछ समय था जब हमने ज़िंदगी को जीने दिया
कुछ नियमों को तोड़ दिया और कुछ रास्तों को छोड़ दिया
जब जीने की बारी आती सबकी, बंधनों में लोग बंध जाते
बेड़ियों को सहारा बनाके सलाखों में कैद हो जाते.
ऐसे जीवन जीना क्या जब हर ओर हथकड़ियाँ हो
कभी धर्म की, रिश्तों की, समाज की, नैतिकता की
और ऐसे मार देते धरती पे इस जीवन को
मेरी स्वतंत्र सांस पे जो सवाल उठाएं
वो वो लोग हैं जो सांस लेने से घबराएं
बोले मुझसे, कि नियम न हो तो जीवन जंगली हो जाएगा
बिना परिमाण के कैसे समाज में रह पायेगा
समाज उन्होंने बनाया है, जो अकेले न कुछ कर पाए हैं,
कभी स्वयं की खुशियों से जीवन अपना न भर पाएं हैं
सांस का स्वतंत्र होना जन्म सिद्ध अधिकार
बंधन तोड़ो, उतार दो अपने काँधे से भार
इस जीवन को जीलो, सारे नशे पीलो
थोडा हसलो, थोड़ो रोलो
पर इस बंद ज़िन्दगी को खोलो
सपने सारे पूरे करलो, खुली आँखों से
निकलो परिमाणों की सलाखों से
फिर झील की सद्भावना भरी ख़ामोशी
गा उठेगी
क्षितिज की मासूमियत खिल उठेगी
धड़कन राग़ गाएगी
ज़िंदगी गुनगुनायेगी
तुम इसे सराहोगे
यह तुम्हे सराहेगी
तुम इसे सराहोगे
यह तुम्हे सराहेगी
तुम इसे सराहोगे
यह तुम्हे सराहेगी!!
Subscribe to:
Posts (Atom)