Tuesday, July 26, 2011
क्या जिए Copyright ©
मदमस्त हाथियों से ना नाचे
तो क्या जिए
तलवार की धार पे ना चले
तो क्या जिए
जीवन के जाम ना पिए
तो क्या जिए
मुश्किलों को गले ना लगाया
तो क्या जिए
अपनी ज़िंदगी किसी के हाथों मे ना दी
तो क्या जिए
कड़वाहट का रसास्वादन ना किए
तो क्या जिए
जंगली घोड़ों के साथ ना दौड़े
तो क्या जिए
रीति रिवाज़ ना तोड़े
तो क्या जिए
छलकते आँसू ना पिए
तो क्या जिए
मोरों की थिरकन पे ना थिरके
तो क्या जिए
मल्हार की ताल पे रह गये डरके
तो क्या जिए
डर ना लगा किसी से, ना मानी हार
तो क्या जिए
हार के ना जीते तो
क्या जिए
नाम ना हुआ तुम्हारा
तो क्या जिए
वो नाम बदनाम ना हुआ तुम्हारा
तो क्या जिए
जीवन ना उधड़ा तुम्हारा किसी के नाम पे
तो क्या जिए
उधड़े धागों को ना सीए
तो क्या जिए
चमकती ज़िंदगी के बाद ना देखे घनघोर अंधेरे
तो क्या जिए
उस अंधेरे मे ना तुमने जलाए हौसले के दिए
तो क्या जिए
हृदय के तार ना तुमने छेड़े किसी से
तो क्या जिए
ना हुए वो तार आज़ाद पखेरे
तो क्या जिए
सिंघों की मांड में जाके ना दहाड़े
तो क्या जिए
हर बार किस्मत के लिए सहारे
तो क्या जिए
जिए वो जो स्वतंतरा आत्मा से साँस ले
जो खुल कर अट्टहास दे
जीवन की धारा के विपरीत बहने का जो दम भरता हो
जो इतिहास के कलन्किन्त किरदारों से ना डरता हो
कीड़े मकोड़ो से रौंदा ना जाना चाहे
वक़्त के थपेड़ों पे जिसकी खुली हो बाहें
जो हर पल को सराहे
जो जीवन के लिए, प्रेमिका सी भरे आँहें
जो हर घूँट को अंतिम घूँट सा पिए
वो जिए
वो जिए
केवल वो जिए
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