Dreams

Wednesday, July 27, 2011

क्यूँ तोल मोल के बोल?? Copyright ©


पोथी पढ़ पढ़ लिए सुझाव
ज्ञान से भर दी अपनी नाव
पर बोले बिना तोल मोल के तो
ना जाने कितने हृदयों को दिया घाव

सीख दी बड़ों ने , समझाया भी
एक बार तीर जो निकले कमान से
वापिस नही आ पाते हैं
तोल मोल के ना बोला प्यारे तो
बोल तुम्हे ही खा जाते हैं

पर अड़ियल गधे के जैसे मैने
उस सोच को नकार दिया
तोल मोल के बोलना ना सीखा
और उद्दंड खुद को करार दिया

वाणी निकले कंठ से तो हरदम
मधुर ध्वनि होनी चाहिए क्या?
मीठेपन से देखो कैसे सियासतें लुट गयी
खरी नही बोलनी चाहिए क्या?

नाप तोल के हर बार हर कदम जो रखे मैने
जी कहाँ पाया था
खुली साँस और फैले पाँखो के बिना
आखश का अमृत कहा पी पाया था

तोल मोल के बोल बोल के थक गया मैं
कभी रोका समाज ने ,कभी संस्कारों ने लगाई लगाम
बोलने पे भी शुल्क लग गया
बिना नाम के ही हुआ बदनाम

इस से अच्छा तो मैं बोल लूँ पहले
मान में जो जो है आता
जिसे अच्छा लगे वो होले पीछे
मुड़ जाए जिसे यह भाव नही भाता

उद्दंड और स्वतंत्र होने मे फ़र्क है भाई
योगों युगों से है यह ही लड़ाई
उद्दंड ने माँगा नही , छीन लिया
स्वतंत्र ने माँगी स्वेच्छा ,बस अपनी नही चलाई

तो स्वतंत्र हूँ तो क्यूँ ना बोलूं
अपने विचार क्यूँ ना खोलूं
क्यूँ परिमाण में जकड़ा जायुँ
क्यूँ उसमे भी सबका होलूं

हृदय में आए जो तो बोल ने मे क्या रोक
हर दम देता रहूं इन सबको क्या धोक
फिर घर जाके शीशा देखूं
और बंदी बने खुद पे मनाउन शोक?

क्यूँ बजाएँ उनका ढोल
क्यूँ ना बाहें तू खोल
क्यूँ जकड़े रहें शब्द परिमाण से
क्यूँ तोल मोल के बोल??

No comments: