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सायों से क्या घबराना , वो तो निकटतम रौशनी का प्रतीक हैं
गहराइयों से क्या घबराना, वो तो तुम्हारी ऊँचाई की सच्चाई है
आँसुओं से क्या शरमाना , वो तो पवित्र आत्मा की निशानी है
हार से दुखी ना हो जाना, वो तो तुम्हारे विश्वा विजय की कहानी है
कल्मे सरों को करदो नमन, वो हुक्मरानो के आगे खड़े थे
बैसिखी पे लंगड़ी टाँगो के आगे शीश झुकाओ, वो दुश्मनो के आगे गड़े थे
मसले फूलों की महक को ना भूलो, वो वीर सेनाईयों की समाधि पे पड़े थे
गिरे स्तंभों का ना तुम मज़ाक उड़ाओ , वो तो इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से जड़े थे
बीते भूत से शर्मिंदा क्या होना, वर्तमान ज़िंदा है यहाँ
पुरानी तस्वीरों पे दिल छोटा क्या करना, नये चित्र्फलक को करो जवां
नंगेपन से क्या शरमाना, हमाम मे नंगे हैं सभी यहाँ
अतीत की आँधियों से क्या हिल जाना, विश्वास हमेशा रहे जहाँ का तहाँ
दाग लगे तो लगने दो तुम, चितकबरे ही तो कहलाओगे
उन श्वेत पोषाखों वाले ढोंगियों से तो ना रंगे जाओगे
मढ़ने दो दुनिया को तुम पर इल्ज़ामों की मिट्टी का लेप
याद रखना अपनी चमक से एक दिन तुम पूरे जॅग को चंकाओगे
जब भुजाओं में दौड़े गर्म लहू तो बहने देना उसे, हो जाना तर बतर
सीने में धड़कन जब मृदंग बजाए, बजने देना , हो ना किसी का डर
भले पूरा जीवन गुज़रा हो अंधकार में, जीत होगी तुम्हारे सुबहे के सुनहरे सूरज के पहर
अपनी राह चले चलना तुम , किसी कारण वश ना गिराना तुम अपना स्तर
काश ना कहना कभी, के काश कमज़ोरों की बात है
जो अपने प्यादों पे विश्वास ना रखते , यह उनकी बिसात है
घबराए कदमो से जो चलते रहोगे तो डगमगा ही जाओगे
विश्वास ही हम पे विधाता की सबसे उम्दा सौगात है
विरासतों, रिश्तों के छूट जाने से क्या घबराना, नयी जागीर, नही तो कैसे पाओगे
हाथों से निकलती रेत से क्या घबराना, संग-ए-मरमर के महल कैसे बनाओगे
काले मेघों से क्या घबराना, वो तो मयूर न्रित्य का संकेत हैं
मृत्यु से क्या घबराना, वो भी तो इस जीवन जैसी सचेत है
मेरे कड़वे शब्दों से क्या घबराना, वो तो अंधेरे मे रौशन दिए से हैं
मेरे विचारों , मेरी कल्पना से क्या घबराना , सब तुम्हारे हित के लिए हैं
मेरे उद्दंड होने से क्या घबराना, मैने तो हार जीत के स्वाद दोनो चखें हैं
मेरी कविता से क्या घबराना , वो तो तुम्हारी ही चीखें हैं!!!
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