
नर्म धूप खिली है किसी जगह, कहीं काली छाँव
है ऊंचे महेल किसी शहर, खंडहर किसी गाँव
पर क्या इस अठखेली से तिलमिलाना प्यारे
तेरी मौलिकता ही आएगी, जगमगा जायेगी....दबे पांव
चिलमिलाती धूप में बोया बीज, काटी फसल सेकी छाँव
प्रयास की गठरी को थामे, नकले यात्री नंगे पांव
जीवन की यात्रा में देखा सब कुछ, पाया सब कुछ,
पर हिम्मत की गागर छलकने न दी, चाहे लहूलुहान हुए घाव
पथिक चला चल, मृगत्रिष्णा की प्यास संभाले, भूल जा पड़ाव
भूल तू अपने भाग्य को , वोह तो जुए खेले है , बदले है हर दम दांव
तूने उम्मीद की डोरी न छोड़ी तो बस शिखर पे पहुंचेगा ही
पर पहुँच शिखर पे, उड़ मत जाना, रखना धरती पे ही अपने पांव
धूप छाँव का खेल , खेलेगा जीवन तुझसे हरदम
कभी तुरुप का पत्ता देगा ,कभी मुफलिस करेगा तेरा दांव
इसके नितदिन बदलते चरित्र पे न हो खुश, न हो दुखी
इसने तो ठानी ही है, घाव देने के बात पूछना " बंधू और बताओ"
तेरी धूप तेरे मन में है, तेरी छाँव तेरी हार नहीं
जीवन के बदलते दांव से नहीं है तेरी विश्वास की नाव बही
तेरा जीवन , तेरी रेखाएं , सब तेरे विवेक , तेरे विश्वास पे टिकी हैं
तुझसे ही धूप यहाँ पे , तुझसे ही छाँव सही
आँख मिचोली खेले यह जीवन मृत्यु के धूप छाँव
महल बना दे तेरे सपने, चाहे खँडहर करदे तेरा गाँव
तूने हरदम सत्य, ढाढस, प्रयास और उम्मीद का दामन पकड़ना है
चाहे कितने बदलें तेरे पत्ते, चाहे कितने बदले इसके दांव
No comments:
Post a Comment