Dreams

Wednesday, October 26, 2011

मुझे तो कोई मुबारकबाद नहीं देता~ Copyright ©


मुझे तो कोई मुबारकबाद नहीं देता
मैं भी तो जिंदा रहने की पूरी कोशिश में हूँ
मेरी तो कोई पीठ नहीं थपथपाता
मैं भी तो मोहताजी साँसों की गर्दिश में हूँ

सांसें एक दिन थम जायेंगी, रगें यूँ ही जम जायेंगी
एक तरफ़ा प्यार ही बस कर पाएंगी
इन साँसों को कोई क्यूँ नहीं समझता
जो कहती हैं " मैं भी तो जिस्मानी बंदिश में हूँ"



मेरी घबराई रूह को कोई क्यूँ नहीं गर्मी देता
मैं भी तो एक पल को जी सकूँ
क्यूँ कोई इसे गोद में नहीं सहला जाता
मैं भी तो मासूम बिलकते बच्चे सा हूँ

खड़ा करके मैदान-ए- जंग में मुझसे पूछता है मुक़द्दर
लाशों का मंज़र पसंद है , या खून की खुशबू
और मैं बस इतना बोल पाता हूँ हर बार
मैं तो बस बिसातों के शिकस्त खाए बादशाहों सा हूँ

हवाओं ने कैंची पकड़ी है हाथो में , मेरी उड़ान के पर कुतरने
और मैं पूछता हूँ , मैं ही, बस मैं ही क्यूँ
हवाएं भी रो पड़ती हैं और कह देती हैं
तू उड़के क्या करेगा, तू आसमान को क्या छुएगा, तू तो बस धरती को छू...

मुबारकबाद न दे कोई, न लगाए गले से ज़िंदगी
न बहाए प्यार की कभी एक तरफ़ा ही नदी
मैं तो ठंडी पीठ की ठिठुराहट से ही बनाऊंगा गर्मी
मैं तो मौत की चादर ओढ़े , ज़िंदगी की महफ़िल में हूँ

मुझे तो कोई मुबारकबाद नहीं देता
मैं भी तो जिंदा रहने की पूरी कोशिश में हूँ
मेरी तो कोई पीठ नहीं थपथपाता
मैं भी तो मोहताजी साँसों की गर्दिश में हूँ

No comments: