Thursday, October 20, 2011
समझो तो ~ Copyright ©
मेरे बहते लहू के रंग में रंग जाए यह धरती तो
मेरे आंसूं के सैलाबों से यह गंगा भारती तो
मेरे अन्दर जो बहती है , जो सब सैलाब सहती है
जो समझो तो अमृत धरा , जो ना समझो तो पानी है
लब जो मेरे गीत गाते हैं, जो तेरा नाम जप जाते हैं
जो तेरे ही प्रेम का गान हरदम गुनगुनाते हैं
यह सारे सुर, ह्रदय के तार , तेरे प्रेम का संगम है
जो समझो तो तरन्नुम है, जो ना समझो तो गाली बन जाते हैं
बहुतों ने मेरी कविता की निंदा की, सराहा भी
किसी ने गाली दी, किसे ने इसे बे-इन्तेहा चाहा भी
मेरे बोल हर किसी के दिल तक पहुंचे येही इच्छा है
जो समझो तो मोहोब्बत है, जो न समझो तो रवानी है
जो गीता ने था समझाया , वो ही मैंने है दोहराया
जो कुरान-ए-पाक़ ने था फरमाया, वो मैंने भी है बतलाया
मोहोबात हो सभी लोगों में,मेरा यह ही डंका है
जो समझे तो आज़ादी है, जो ना समझे तो दंगा है!
जीवन की बिसातों पे , प्यादे मैंने भी रखे
कभी हराया भी, कभी कभी हार के स्वाद भी चखे
इन बिसातों के प्यादे होगे, क़ि होगे बादशाह कहीं के तुम
समझो तो खिलाड़ी हो, जो ना समझो खाओगे बस धक्के
मैं वो ही करता हूँ, जो मेरे मन को भाता है
सीख जाऊं सब कुछ मैं, चाहे अभी ना आता है
आगे बढ़ना ही मेरे जीवन का एकमात्र लक्ष्य है अब
जो समझो तो तुम्हारा फायदा, नहीं तो बस घाटा ही घाटा है
कवि की बात पे ध्यान देना हरदम मेरे प्यारों
वो अपनी ही पीड़ा को शब्दों में पिरोता है
तुम्हे राह दिखा जाए, चाहे खुद को खोता है
तुम्हे दर्शन करा जाएगा वो तुम्हे अमृत चखा जाएगा
जो समझो तो जागोगे, नहीं तो जग तो वैसे भी सोता है
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment