Wednesday, October 19, 2011
शर्त Copyright © .
जैसे ही होश संभाला,गरम खून यौवन का खौल उठा
अपनी शर्तों पे जीने का तूफ़ान,बाजुओं में दौड़ पड़ा
शर्त लगी थी ज़िंदगी से, न जाने इसे कौन जीतेगा
ज़िंदगी मेरी जागीर बनेगी, क़ि मेरा साया इसके कोठे पे बीतेगा
उम्र की जंजीरों ने मेरे सपनो को बाँधा था
चाहे मैंने अथाह आसमान की ओर ही निशाना क्यूँ न साधा था
उमंगो के गुब्बारे फूले न थे अभी तक
क्युंकी तजुर्बे का ही बस रह गया कांधा था
शर्त लगाई मैंने ज़िंदगी से और हाथ में था मुफलिस
दाव पे लगा था सब और समय रहा था पत्ते पीस
हार के डर से मुफलिस पे बाज़ी न लगायी सोचा तो जीत नहीं पाउँगा
पर हर बार हार से मिला हल्का सा डर, उठी हल्की सी टीस
ज़िन्दगी और किस्मत का समय था और मैं हारा
फिर कुछ सिक्के जोड़े और फिर हिम्मत का था सहारा
फिर बाज़ी लगी , फिर शर्त लगाई मैंने
फिर एक दिन किस्मत हारी, और बही जीत की धारा
शर्त लगाओ...ज़िन्दगी से, चलो तलवार की धार पे
जीतोगे तो हो ही तुम, पर न घबराओ हार से
जीत हार किस्मत नहीं, कर्म निश्चित करते हैं
हिम्मत भर लो, गहरी सांस लो और चिल्ला दो पूरी दहाड़ से
किस्मत तुम्हारे कदमो पे रेंगने के लिए ही है
बस उसे हराना तुम्हारा काम
शर्त ज़िन्दगी , किस्मत, काल से नहीं.... शर्त है खुद से
जाओ, लगाओ शर्त, और भरलो अपने जाम
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