कोस रहा मैं कबसे सबको
इस - उसको और अपने रब को,
दिल बहलाने के करतब सारे
कटाक्ष के सब पे तीर मारे
अन्दर की असमंजस का
दोष दे रहा पूरे जग को।
अपनी कायरता की बन्दूक चलायी
रखके उनके कंधो पे,
वोह यह समझे कायर वोह हैं
वाह वाह की ,और ताली बजाई ।
क्षमा याचना से डर लगता है
कमियाँ किसी को दिख न जाएँ,
वो तो कर दें माफ़ मुझे पर
मेरा अस्तित्व कहीं मिट न जाए।
दोहरी भाषा, दोहरे वादे
संकुचित मानसिकता
पर आसमान छूते इरादे,
जीवन की बिसात पे
कमज़ोर ,डरे मेरे प्यादे ।
थोथा चना बन गया मैं
जीवन के थपेड़ो से सहम गया मैं,
अन्धकार और निरंतर हार की वजह से
मुखौटे पहेन लिए मैंने सारे ।
छुपा दी सारी त्रुटियाँ
और झूठी तारीफों के पुल बांधे।
घुट रहा हूँ मैं प्रतिदिन
दिखा दिखा के सबको चेहरे,
कुरेद कुरेद के सबकी कमियाँ
खुद के घाव हो रहे गहरे।
उड़ सकूँ मैं एक दिन
खुले आसमान की स्वच्छ हवा में,
इस दोहरे जीवन को त्याग
स्वयं को इतना उठाऊं,
कि नतमस्तक हो जाए यह जग
सब के दोषों से पहले
अपनी कमिया देख पाऊं.
कामयाबी की और बढे मेरे पग.
मोक्ष पाके अमर हो जाऊं!
3 comments:
great thoughts
kya kahu, lagta hi nahi its u. great
this one really touched me. Mukhotey....super like it.
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