प्रतिदिन उठके बोल रहा मैं
इश्वर तू क्यूँ नहीं सुनता
विजय के धागों से
मेरा पथ क्यूँ नहीं बुनता?
कांटे ही कांटे
बिछा दिए क्यूँ
पुष्प की बेला क्यूँ नहीं चुनता
इश्वर तू क्यूँ नहीं सुनता?
चहुँ और दृष्टि दौदिई
और भीतर से ये ध्वनि आई
देख ले किसको क्या मिला है
किसका भाग्य कैसे खुला है
वो जिसके हाथ नहीं हैं
अपनों के जो साथ नहीं है
भूख से जो बिलक रहा हैरोग से जो तड़प रहा है
पितृ - रूपी छत्र नहीं है
मात्र-स्नेह की ताप नहीं है
मौन करके सब है सहता
किसी से कुछ नहीं कहता
और तू यह बोल रहा है
इश्वर तेरी क्यूँ नहीं सुनता?
कृतग्य होके
देख भला है क्या क्या तेरा
कुंठित न हो
धीरज धरले और
बना हर रात ,सवेरा
स्वयं से कह दे
भाग्य से ज्यादा, समय से पहले
कुछ नहीं मिलता
नतमस्तक हो जा, शीश झुका दे
कहदे उसको
बिन मांगे सब कुछ दे देता
तू मेरी हर बात है सुनता
तू मेरी हर बात है सुनता!
1 comment:
I mean Anupam this work is incredible. You indeed have created a masterpiece. Surreal but very nice.
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