Dreams

Friday, January 29, 2010

चुनौती Copyright ©


बूढ़े उसूलों को
खोखली रस्मो को
खंडहर हो गए
समाज के स्तंभों को
दें चुनौती।

बैसाखी पे चलते

लोकतंत्र की लंगड़ी टांगो

को दें चुनौती

अर्थ व्यवस्था की

डूबती संरचना को

दें चुनौती।


मतिभ्रस्ठ हो गए

युवा को

नवयुवकों की चुनौती।

ज़ंग लगी राजनीति को

नयी व्यवस्था की चुनौती।

जीर्ण हो गयी तकनीको को

आधुनिक प्रोद्योगिकी की चुनौती।

दुर्बल मानसिकता को

दृढ संकल्प की चुनौती।

लहू लुहान इस जाहाँ को

संवेदनशीलता की चुनौती।

काली घनी रात को

सुबह के सूरज की चुनौती।

शरद ऋतु की गिरती पत्तियों को

बसंत ऋतु के अनेक रंगों की चुनौती।

चुनौती !


समाज के उत्थान के लिए

जन मानव के कल्याण के लिए

मानवता के निरंतर

अभ्युध्यान के लिए

आओ दे दें यह चुनौती।

तुमको मेरी चुनौती

मुझको तुम्हारी चुनौती।



1 comment:

Dhaarna Vira said...

Like this one too !! Fan club hai kya koi tumhaara ?