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गिद्ध खड़े हैं परनालों पे
और घनघोर घटाएं फैलीं हैं
रक्त बह रहा नालों में और
स्वछता ही मैली है
खूब बही जो सर सर हवाएं
वोह आज बस ज़हरीली हैं
गिद्धों ने तो सर ऊंचा कर
रक्त से होली खेली है
आज कटे हैं सर राजकुमारों के भी
सुबह से बस मौत ही माओं ने झेली है
दोपहर होते ही चिताएं जल उठी
केवल लहुलुहान हथेली है
गिद्ध आये थे सुबह सुबह और
कर गए ऐसा प्रहार
अपनी चोंचो और नाखूनों से
कर गए नरसंघार
अब शाम हो चली और जीते गिद्ध बैठे
देख रहे हैं सबकी हार
ऐसे मंज़र में एक आँख खुल उठती है
नज़र मिला के गिद्धों से वो काया
खौल उठती है
उन आँखों ने यह भयावह होली
पूरे दिन आज देखी है
लड़ते लड़ते घायल हो चली वो आँखें
और चिताओं की गर्मी सकी है
उठ खड़े हो और देख क्या मजमा
गिद्धों ने फैलाया है
कैसे अपने नाखूनों से तेरी धरती को
लाल बनाया है
डरते डरते उस काया ने शक्ति अपनी बटोरी है
एक हाथ में खड्ग और एक में रक्त भरी कटोरी है
क्रोध से उद्गम एक बिजली अब उसकी नसों में जो दौड़ी है
कातिल गिद्धों के सामने अब उसकी छाती चौड़ी है
हर दिशा से गिद्धों ने किया प्रहार
कोई टूटा टांगो पे तो किसे ने किया दिल पे वार
उस काया ने खड्ग को अपनी, कुछ ऐसे लहरा दिया
गिद्धों के कलमे सरों से उसने बनाया अपना हार
अब रात हो चली, गिद्ध मर चलो और थक गयी वो काया है
पर कल और आयेंगे , और मरेंगे और बनेंगे हार
यह गिद्ध निरंतर आते रहते
रक्तपात फैलाते रहते
बिना भय और कोमलता के
मानव लहू बहाते रहते
उठ खड़े हो , इन गिद्धों से न मानो हार
अपनी शक्ति को पहचानो , निकले ज्वाला बारम बार
अपनी तलवार फैलाओ ऐसे कि
एक बार में करदो इनको चित्त
इनकी उड़ान को सीमित करके
करदो इनको शुद्ध
नहीं तो यह फिर आयेंगे
फिर से जीवन बिखरा जायेंगे
यह निर्दयी गिद्ध
यह निर्दयी गिद्ध
यह निर्दयी गिद्ध
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