Sunday, May 22, 2011
स्वाहा ! Copyright ©
पुरानी लकीरों को ...स्वाहा
जंग लगी तकदीरों को...स्वाहा
हारों को ..स्वाहा
अतीत की कटारों को ...स्वाहा
बेड़ियों को ..जंजीरों को ..स्वाहा
नहीं उम्मीद नया चैन....आहा
पुराना सब कुछ..स्वाहा!
उलझनों को , कठिनाइयों को..स्वाहा
कारागारों, सलाखों को ..स्वाहा
जकड़ती रीतों को...स्वाहा
अकडती पीठों को ..स्वाहा
झूठी माया को...स्वाहा
ठिठुरती काया को ..स्वाहा
अनगिनत चोटों को... स्वाहा
थर्राते होंटों को... स्वाहा
नए ध्वज को .. आहा
पुराने झंडों को...स्वाहा
यह रीत है..
समय चक्र भी
जो जीर्ण है जो जंग लगा है
वह उतर जाएगा
नवीन परत चढ़ा जाएगा
चाहे मरहम कहलो चाहे नया जीवन
समय तो अपना रंग दिखा जाएगा
सो याद रखो यह अच्छा समय
पर न भूलो बुरा वक़्त
आज की कोमल सतह की वजह से
न भूलो अन्दर जो है सक्त
पर समय की मांग है
और किस्मत का इशारा
मुट्ठी में है तेरे जग सारा
तो कर आँखें बंद और लगा छलांग
न पीछे मुडके देख दुबारा
आगे सब ...आहा
पीछे सब...स्वाहा
पीछे सब..स्वाहा!!
पीछे सब..स्वाहा
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