Thursday, May 19, 2011
छिलके ! Copyright ©
फल तो सब खाते हैं
रस तो सब भाते हैं
पर इन छिलकों का क्या
छिलके जो कवच हैं जीवन का
जो हैं बिछौना
जो हैं गर्भ भ्रूण का
जो हैं हिंडोला
पूछो इन छिलकों से जो
फैन दिए जाते हैं
जो किसीको भी न भाते हैं
क्यूँ इनकी ऐसी तकदीर
यह जूठन नहीं , न हैं कूड़ा
यह तो हैं सुनहरी जागीर
अपने जीवन के छिलकों को पहचानो
इन छिलकों का मेहेत्व जानो
इनके बिना न तुम फल बन पाओगे
न इनकी गर्मी की परत बिना जी पाओगे
इन जैसे ढालों के बिना लुप्त हो जाओगे
रस तो क्या , सांस भी नहीं ले पाओगे
यह छिलके हैं आज कल माँ-बाप
जो फेंक दिए जाते हैं
जैसे ही मिलता जीवन का आलाप
त्वमेव माता, च पिता त्वमेव
अब केवल कूड़े दान में मिलते हैं
किसी वृधाश्रम में ठिठुर ठिठुर के
नीरसता में बहते हैं
जिन "छिलकों" ने ताप सह के
तुमको खिलाया था
उनको तुमने दूर फ़ेंक के
ऐसी अग्नि में सुलगाया था
अरे चरणों में जिनके तुमको होना था
चरनामृत तुमको जिनका पीना था
उनको तुमने पैरो से अपने दबा दिया
लात मार दी ह्रदय से अपने
छिलका उनको बना दिया
यह छिलके नयी पौध की खाद बनें
तुमको पाला था पहले अब
अब तुम्हारे पौंधों को आबाद करें
यह छिलके तो अपना जीवन तुम्हे बचाते रह गए
तुमने इनको दिया निकाल और यह फिर भी आशीर्वाद कह गए
पाप पुण्य का बहि खाता जब लिखा जाएगा
तब तुम्हारे हिस्से केवल नरक ही आएगा
मात-पिता को छिलका रुपी तुमने जैसे बना दिया
देखना वैसे तुमको यम ने न अगर जला दिया
पिता तना और माँ शाखाएं हैं तुम्हारे
फलते जीवन की
ना पंपोगे एक क्षण को तुम
यदि तुमने
छिलका इनको बना दिया
छिलका इनको बना दिया
छिलका इनको बना दिया
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