Sunday, May 29, 2011
उधेड़ बुन !! Copyright ©
यह काया , यह माया यह इन्द्रधनुष का सरमाया
यह गरजते मेघ, यह काली घटाएं, ये साया
नाचते मोरों का झुण्ड, या पहली बारिश की बूँद
सूरजमुखी की मुस्कान , या वेदों का गान
मेरा मन अनेको ख़याल रहा है बुन
यह मंद हसी होंटों पे, ओह यह कैसी है उधेड़ बुन
कभी प्रेम का मधुर गान , कभी सखी की मुस्कान
कभी धर्मों की छाप, कभी धरती का नाप
कभी पंछियों से बातें , किस्मत से मुलाकातें
कभी परछाइयों से आँख मिचोली, कभी खून की होली
अंग अंग में बाजे मृदंग, रोम रोम गाये है धुन
यह मात्र-कोमलता भीतर, ओह यह कैसी है उधेड़ बुन
पिरोते मोटी, सीपों की माला , शंखों का स्वर
ब्रह्माण्ड के अनगिनत स्वरों की अनंतता अमर
मिटटी की खुशबू, जगहों की रूह
भटकते भ्रमिक , मुस्कुराते श्रमिक
बंद आँखों से भी जग देख लेना
झेलम की लहरों से उम्मीदें सेक लेना
चिनार की ऊंचाई, प्रशांत की गहराई
मेरा ह्रदय अपनी कम्पन रहा है सुन
यह कैसी है कल्पना , यह कैसी है उधेड़ बुन
इन ख्यालों में डूब के , इन रंगों में कूद के
ही मैं अपने चित्रफलक को रच पाया हूँ
इन ख्यालों के खजाने से ही मैं अपनी कल्पना खर्च पाया हूँ
देवों का आशीष है मेरी सोच की कूची
मेरी सोच हैं होती रहे निरंतर ऊंची
फिर एक दिन मैं कल्पना के सागर से ढूंढ लूँगा वोह अनोखा मोती
तब न होगी सोच में मिलावट, न होगी कोई घुन
होगी केवल सुनहरी कल्पना , न होगी यह उधेड़ बुन
होगी केवल सुनहरी कल्पना , न होगी यह उधेड़ बुन
होगी केवल सुनहरी कल्पना , न होगी यह उधेड़ बुन
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