मुझपे नीरस और गंभीर
होने का आरोप है
कहते हैं, कटु सत्य बोलने से
नहीं हिचकिचाता
बात बात पे करारा झापड़
रसीद करने से भी बाज़ नहीं आता
चलो …………..मान लिया
क्या करूँ, स्वयं इतने धक्के
खाएं हैं
नैतिकता की राह पे चलते चलते
कि सह नहीं पाता…..
पर ..जाने दो…….
आज ….
एक मज़े की बात हूँ बताता …
नैतिकता से आज पाला फिर पड़ा
अपने अक्खड़पन एक बार पुनः दिखाने का
टस से मस न हो जाने का
भैंस के आगे बीन बजाने का
और लोगों की घ्रिना का पात्र बन जाने का
पर मैं चुप रहा
होने दिया जो होना था
प्रयोग का समय था
नतीजे की प्रतीक्षा थी
कई निष्कर्ष निकालने थे
कई राज़ सुलझाने थे
मानव चरित्र के
अनेक पहलू छू जाने थे
फिर बात हुई, मैंने केवल
भ्रिकुटी तानी क्रोध से
फिर मन ही मन चिल्लाया
आन्त्रशोद से..
पर मज़े की बात थी
कैसे नैतिकता बिकाऊ थी
आत्मा बाजारू और
शर्म स्वयं नग्न थी
परन्तु कारण क्या था इसका
मनुष्य क्यूँ था इतना रूखा
या फिर केवल कुछ गिने चुने ही ऐसे थे
या फिर मेरी नज़र का था धोखा
मज़े की बात यह थी कि
मानुष जानता है त्रुटियाँ
पर इतना पारंगत हो चूका है
नक़ाब पेहेन्ने में कि
भूल गया
कुछ लोगों के लिए हैं
वो नकाब पारदर्शी
सब कुछ दिखा था
मज़े की बात यह भी थी
कि बाकी औरों ने भी अपने
कान ढक लिया, जिव्हा पे लगाया ताला
और मूह भी मोड़ डाला
परन्तु उनका मौन जोर जोर से चीख रहा है
“ क्यूँ लें हम पंगे “
हमाम में हम सब ही तो हैं नंगे।
कहते हैं एक मछली पूरे
तालाब को गन्दा है कर देती
पर बाकियों की नैतिकता कहाँ
चली है जाती
क्यूँ भेड़ चाल में
स्व-आत्मा है बह जाती
क्यूँ वो हम करते हैं
जो प्रचलित है
स्वयं का मार्ग क्यूँ नहीं
बुनते
उत्तर बूझना मेरा काम था
मैंने कई घंटे विचार किया
कई बातो को तोला और
एकाग्र होके ध्यान किया
क्यूँ ??
अकेले चलने से डर लगता है
देश, समाज और समूह से
निकाला ….सबको खलता है
इसीलिये यह अमानवीय
प्रथा चालू है
इसीलिए नैतिकता के दामन
का छोर खाली है
मज़े की बात है यह भी
सबको मालूम है कि
उनकी नय्या , ऐसे कर्मो से
डूबने वाली है
परन्तु कोई गाँधी नहीं बनना चाहता
कोई दूसरा गाल नहीं बढ़ाना चाहता
क्यूँ करें नीति का पालन
क्यूँ करें कठिन राह का चोगा धारण
ऐसे मज़े मज़े में पता चल गया
कि सब मज़े लेने में लगे हैं
नीति, आत्मसम्मत और धर्म
सब बेईज्ज़त, बाजारू से पड़े हैं
मैंने भी मज़े लिए
और मज़े से सो गया
परन्तु मेरी आत्मा
में है अभी भी चेतना
कल सुबह पुनः उठूंगा
और एक बार फिर
नैतिक जीवन धारण करूँगा
केवल वो करूँगा
जिस से हर सुबह मैं
अपना चेहरा दर्पण में देख सकूँ
और हर रात
गहरी नींद के मज़े ले सकूँ
गहरी नींद के मज़े ले सकूँ
गहरी नींद के मज़े ले सहूँ !!!!
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