एक बरस में एक बार
ही ब्रह्मकमल खिलता है
श्रृष्टि की अद्भुत रचना का
सार उस पल में कहता है
ऐसा सुसज्जित पारसमणि
हो जाता उस पल में
लाखों उमीदें
जगाता है
ऐसे अद्भुत अनुभव
ऐसी सुन्दरता देखि जिस दिन मैंने
सार समझा जीवन का
और ठंडक पड़ी मन में
दीर्घायु की कामना करते
उनको यह बतला दूँ
जीवन लम्बा चाहे हो न हो
बड़ा उसको बना दो
एक पल में ऐसे खिल जाओ
जैसे ब्रह्मकमल हो
अपनी छाप उस पल में जमा दो
कि वो पल अमर हो
बात पते की एक और मैं बतलाता हूँ
एक भेद का द्वार और खुलवाता हूँ
जिन देवों को हम पूजते हैं वो
हम नश्वारों से डरते हैं
क्यूँकी उनका जीवन अमर है होता
और नीरस सा जीवन व्यापन करते हैं
मानव जीवन का हर पल होता है मौलिक
जो कल हुआ था उस पल में
वो कभी और न करेगा जीवन आलौकिक
तो समझे हम कि अपने जीवन
के हर एक पल को ऐसे जी जाएँ हम
कि हर पल में ब्रह्मकमल सा खिलें और
उस पल का अमृत पी जाएँ हम
ब्रह्मा कि रची श्रृष्टि के
ऐसे अनमोल रत्नों का करें सृजन
खिलें चाहे एक जीवन में एक बार ही
पर ब्रह्मकमल सा खिले हम.
उस परब्रह्मा में मिलें हम
ब्रह्मकमल सा खिले हम
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