पांच सितम्बर तो चली गयी
और भूल भी गए सब
अपने शिक्षकों को
कभी याद भी आये
भूले भटके तो बस
याद आती है मास्टरजी की छड़ी
सब उस बेंत के सहारे ही हुए हैं बड़े
उस मास्टर के सिद्धांतो पे हैं सारे देश खड़े
और हम उन्हें भूल गए।
उस मार को कोई नहीं भुला पाता
कभी कोसता शिक्षक को तो कभी घबराता
हरपल हरदम बस उसके कठिन अनुशासन
की निंदा करते
और उस से ज्यादा ज्ञान होने का दम भरते
उसे चिढाते, उसे सताते
मित्रों यारो में उसकी नक़ल भी उड़ाते
पढ़ाने के ढंग को लेके
शिकायत भी कर जाते
पर उसकी लाल स्याही की ताक़त से
थर थर कंपकपाते
एक दिन ऐसे ही अनायास
हमने उसे समझने का किया प्रयास
हम भी शिक्षक बन पड़े
और हो गए लाल स्याही के उस पार खड़े
ताना सीना , तानी छाती
अब तो थी हमारी बारी
एक हाथ में बेंत थी
एक हाथ में खड़िया
अब सिख्लायेंगे सबक प्यारों
अब तो फंस गयी चिडिया॥
पहुंचे कक्षा , किताब उठाई
हमारी डर के मारे
आवाज़ ही न निकल पायी
इतने सारे पौधे थे सामने
इतनी मासूम कालिया
हमारी ओर ज्ञानार्जन
को ताक रही थीं अनेक आखें
गुरु, शिष्य का अनकहा सा
नाज़ुक पुल बांधे
इतना डर तो लाल स्याही के उस पार
भी नहीं लगा था
शिक्षक क्या है , यह हमको
थोडा थोडा ज्ञात होने लगा था
शिक्षक वो पानी है जो
इन नाज़ुक अरमानो, उड़ानों को
सींचता है
इनकी मूल जड़ों को
गहरी और मज़बूत बनाता
और , चाहे जितना भी अपमान
सहना पड़े फिर भी
अपने धर्म से मूह नहीं छुपाता
धैर्य का सागर होता शिक्षक
समाज का स्तम्भ होता शिक्षक
यूवा का एक मात्र सहारा होता शिक्षक
गुरु ब्रह्म भी
गुरु विष्णु भी
गुरु है साक्षात शंकर
कोई नहीं है गुरु जैसा
न कोई उस से बढ़कर
वो लाल स्याही
उसने अपने श्रम से कमाई है
और उस लाल स्याही का मान
रख सके हम
इसी में ही समाज, कानून
भविष्य की भलाई है
उस लाल स्याही को मेरा प्रणाम
उस लाल स्याही के उस पार खड़े देवता
को मेरा सलाम
धन्यवाद आपका ,
नतमस्तक होके , दंडवत प्रणाम
इस जीवन, इस ज्ञान ,इस रौशनी
प्रदान करने के लिए ,
स्वीकार करें मेरा आभार
तुम….
जो खड़े हो लाल स्याही के उस पार
लाल स्याही के उस पार
लाल स्याही के उस पार !!!!
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