सोये से जगाने को तो
कई आवाजें उठती हैं
गूँज बनके इतिहास में
हरदम घूमती हैं
पर क्या करें उनका
जो मूक इसलिए नहीं हुए
कि वो चुप रहते हैं
बल्कि इसलिए क्युंकी
वो मृत हैं?
सोये ज़मीर को तो
उठाया भी जा पायेगा
मूक आत्मा को तो
बुलवा भी दिया जाएगा
पर सफ़ेद कपडे में लिपटी
मृत मानवता को
जीवित करे कैसे
वो कायरता और
साहस की कमी से मर चुकी है
और भौतिकता से जिनकी कब्र खुदी है
और धन पे चिता बैठी है
मृत मानवता
किसने मारा उसको
किसने यह पाप किया
पुछा स्वयं से तो
आत्मा ने ये आलाप दिया
झाँक ज़रा अपने भीतर
और खोज उत्तर तू
आखरी बार कब तूने
किसी का उद्धार किया
हथेली उठा अपनी
और देख किस किस के लहू से
वो लाल है
तो अब भी आईने में
स्वयं को देख पा रहा
अमानवीयता की यह मिसाल है
कंकर देखो किसी की आँखों में
उस से पहले अपनी आँख का रोड़ा हटाओ
मानवता को कोसने से पहले
मानव बनके दिखाओ
नहीं किया जीवित को
श्राद्ध भी न कोई कर पायेगा
क्युंकी हर किसी में मानवता का
पिंड दान हो जाएगा
झाँक भीतर अपने और
खोज निकाल उस दीमक को
जो चाट रही तेरी आत्मा
तेरी मानवता को
फिर कर संकल्प कि तू उसको
निकाल फेंकेगा
और पुनः मानवीय धर्म
में ही अपनी आत्मा सेकेगा
हो जा जीवित
न रह मृत
तेरे अन्दर देव बसा है
पवित्र हो
और स्वयं की पवित्रता का
चख ले चरनामृत
जाग रे मानव
जाग रे मानुष
बहने दे अन्दर का अमृत
नहीं तो यम देव
खड़ा है भैंसे लेके
करने तुझको घोषित
मृत
मृत
मृत!!!
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