लिखे जाने दो बारूद से इतिहास
लहू से सींचा जाये हरदम प्रयास
प्रत्यक्ष और अदृश्य दोनों
शत्रुओं का हो जिस दिन आभास
चुनौती दे दो और लगाओ ललकार
धधके अन्दर विश्वास का लावा
अब और नहीं थामो उसको
बोल दो धावा
परिस्थितियों का आवलोकन
करते सभी हैं
और कोसने में भी नहीं झिझकते
दुबक के बैठ जाते हैं
कभी रोते हैं, कभी सिसकते
नपुंसक आत्मा कहाँ ले जाओगे
ललकारना भी न होगा काफी
चुनौती दे दो स्वयं को पहले , क्यूँकी
नपुंसकता को तो ईश भी नहीं देगा माफ़ी
बोलो धावा परिस्थितियों पे
बोलो धावा तकदीर पे
घात करो विश्वास के धनुष से
और उम्मीद के तीर से
चोट कर दो सब पे जो तुम्हे
हैं ललकारते
बोल दो धावा उन सब पे
जिन्हें तुम्हारे अन्दर की
ज्वाला का अनुमान नहीं
और उनपे जिन्हें ऊँगली उठाने के सिवा
किसी और का ज्ञान नहीं
मनवो लोहा जिसमे हो ताप
ऐसे जैसे तेरे अन्दर का लावा
और बस, सांस भरो
बोल दो धावा
बोल दो धावा
बोल दो धावा
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