Wednesday, February 2, 2011
हर हर गंगे....Copyright ©
इस हमाम में तो हैं हम सब नंगे
फिर क्यूँ कुछ हम में से चिल्लाएं हरदम
हर हर गंगे, हर हर गंगे
हम सब के काले काम
सहने को न तैयार उसका अंजाम
बगल में हरदम छुरी है अपने
मूह पे लेकिन हरदम राम
जो बोलें उसपे न कभी रहते अचल
जुबां भी बेच खायी कल
मन में हरदम मदिरा झूमें
मूह में फिर भी गंगाजल
पैसे से पोंछे सारे पाप
गायें "गरीबी हटाओ" का आलाप
कुकर्मो से कमंडल भर दें हम
पर रुद्राक्ष की माला और करते जाप
नंगे नंगे आये थे हम
नंगे नंगे जाना है
नग्न सत्य का चोगा पहनो
गंगा जल ही सबने आखिर में पाना है
जाको राखे साइयां
मार सके न कोई
जाको कुकर्मो की लत है लागे
उसे बचा सके न कोई
कर्मो को भभूत लगाओ
करो सत्य , अहिंसा का जाप
प्रेम को बांटो, अन्दर के दानव को काटो
कर लो हर मनुष्य से भारत मिलाप
हर हर गंगे बोलें वोह ही
जो गंगाजल का अर्थ समझें
जो जनेऊ की शक्ति भांपे
और अपने कर्मो का बोझा खुद ढोये
गंगे करदे माफ़ हमे तू
हमने तुझमे सारे पाप धोये
तेरे पावन जल से हमने
अपने पापों के बीज बोये
जो फिर ऐसा करें हम तो
नंगा हमसा कोई न होए
नंगा हमसा कोई न होए
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