Monday, February 7, 2011
शायर या सिफर?Copyright ©
कोई शायर कहता है , कोई तेरा आशिक बुलाता है
कोई खुदा की कायनात का काफिर बनाता है
नहीं मालूम उन्हें कि मैं तो
तेरी चाहत और पागलपन के बीच भटकता हुआ एक सिफर हूँ
उर्दू की महफ़िल में आया हूँ
तेरी मोहब्बत का पैगाम पहुंचाने
इस कायनात को तेरी खुशबू से सजाने
इल्म न हो किसी को, ऐसा मेरा अंदाज़ नहीं
मैं तो आया हूँ तेरी मोहोब्बत का ही साज़ बजाने
कैसा अंदाज़ चाहिए बता देना
दूर करने से पहले एक बार बस सीने से लगा लेना
खुशबुयें तो बहुत हैं मेरे दामन में तुझे देने को
इश्क की कौनसी खुशबू पहेननी है तुझे, यह बस बता देना
कोई चाँद लाएगा , कोई तारे तोड़ेगा
तेरे लिए कोई किस्मत की कलाई मरोड़ेगा
मैं तो बस तुझे एक वादा हूँ दे सकता
चाहे जो हो जाए, यह बन्दा तुझे न छोड़ेगा
तुझे समझना कोई आसान बात नहीं
तेरी जुल्फों में कई विरासतें, सियासतें खो गयीं
तुझे समझूं, तुझे जानू यह अरमान है अब बस
चाहे खो के समझूंगा, चाहे पा के समझूंगा
यह दिल का मकान खाली है, दरवाज़े भी बंद हैं
खिडकियों से भी मेरी प्यासी आँखें झांक रहीं
आजा तू अब , तोड़ दे तू इन दीवारों को
चल चलें दूर इश्क की जन्नत में कहीं
कोई शायर कहता है , कोई तेरा आशिक बुलाता है
कोई खुदा की कायनात का काफिर बनाता है
नहीं मालूम उन्हें कि मैं तो
तेरी चाहत और पागलपन के बीच भटकता हुआ एक सिफर हूँ
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