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खिली फसल है उडी पतंग है
झूमे हैं नर नारी
इस बसंत में तो नेता की
भी है जेबें भारी
देखो पंचमी है आई
बसंत आया रे भैया
वैलेंटाइन भी आने वाला
खुश हैं सारे युवा
इसी बात से तो हर साल
है अपना भारत डूबा
गुलाबों की बिक्री है भारी
बसंत आया रे भैया
अर्थव्यवस्ता डूब रही है
डूब रही है जनता
आजकल तो केवल कमा रहे हैं
इ टी वाले अभियंता
जेबें तो अम्बानी की हैं बस भारी
बसंत आया रे भैया
छब्बीस जनवरी चली गयी
भूल गए तिरंगा
भूख से अब तो बिकल रहा है
पूरा भारत नंगा
१५ अगस्त की है अब बारी
बसंत आया रे भैया
बसंत हो गया डी डी एल जे
का बस वो एक गाना
फसल पके या नहीं पके
हमे तो बस बॉलीवुड है जाना
देखो क्या हो गया रे ज़माना
बसंत आया रे भैया
आखरी पंक्ति मेरी कलम
रच जाए ऐसा गाना
देश भर को जगाने का
बस हो एकमात्र यह बहाना
हाथ उठे आप सब के , वाह वाह हो , हो सराहना
बसंत आया रे भैया
देखो पंचमी है आई
बसंत आया रे भैया
1 comment:
sundar kavita .....
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