Dreams

Saturday, February 12, 2011

उड़ चले...Copyright ©


बड़ी तमन्ना थी उड़ने की

पंख भी थे मेरे जवान

निगाहें हरदम आसमान पे थी

मुठ्ठी में करने सारा जहाँ

उड़ सकूँगा की नहीं

इसका पता न था...

बस इच्छाओं के पर थे

और इसी उम्मीद में लहू बहा



आज आसमान चमकदार है

हवाएं भे कैंची लेके नहीं निकली

पंख भी आज कुतरे न जायेंगे

बैठे परिंदे भी आज पंख फैलायेंगे

मैं भी आज उड़ान भरूँगा

मैं भी चिल्लाऊंगा

जो इतने दिनों से इच्छा थी

वो मैं आज पूरी कर पाउँगा

मैं भी आज उड़ पाउँगा



यह उड़ान पंखो से मुमकिन नहीं हुई है

न ही यह हवाओं का जोर है

यह तो हौसले की उड़ान है

उम्मीद के पंख हैं

और मंसूबों के घोड़े हैं

और संकल्प की कमान है

धैर्य का सागर पालना सीखा मैंने

भाग्य के चाबुक भी बहुत सहे

इस उड़ान के लिए न जाने

कितने सपनो के महेल ढाए

पर न टूटा मैं

और आज उड़ पड़ा



यदि आज लगे कि कल क्या होगा

उड़ पाएंगे की धरती हे पा पाएंगे

तो सांस भरो और देखो नीले आकाश की ओर

एक ही हौसला हो..... चाहे हो सांझ चाहे भोर

कहने दो हर किसी को जो वो कहना चाहते

तुम बस आँखे बंद करो और

कहदो खुद से

हम तो बस उड़ना चाहते

हम तो बस उड़ना चाहते

हम तो बस उड़ना चाहते!




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