Dreams

Sunday, February 6, 2011

तेरी कुर्बत की चाह ! Copyright ©


तूने डुबोया है इतना हमे
हम और डूब न पायेंगे
तेरे नशे में ए जाम-ए-ज़िन्दगी
हम और खो न पायेंगे
मोहोब्बत तो हमने की थी तेरी साँसों से
अपनी सांस भर से अब हम ...जी न पायेगे



ज़िंदगी के तरन्नुम को गाना सिखाया था तूने
मोहोब्बत की शमा पे पतंगा बनाया था तूने
इस तर्रन्नुम , इस शमा की अब बात रही नहीं
गा चुके , जल चुके हैं हम इनता
कि अब कोई और गीत गा न पायेंगे



अपने ही पानी में डूब जाना बर्फ का होता है मुक़द्दर
अपने ही खारे पानी में समां जाता है समंदर
तूने ऐसा सूखा साहिल बना दिया है हमे
कि प्यास ही नहीं रही किसी की
तो प्यास से हम कैसे मर जायेंगे


तेरी कुर्बत की चाह में ऐसी
मुफलिस हुई जा रही है यह ज़िंदगी
तेरी मोहब्बत रगों में ऐसी
दौड़े जा रही है जैसे हो खुदा की बंदगी
मेरे सब्र का इम्तेहान मत ले ए मोहोब्बत
तेरे लौटने की आस में जिए जा रही है ज़िंदगी!

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