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सलाखों में क़ैद हो तू
चाहे खुले आसमान का हो परिंदा
मसले फूलों की महक हो
चाहे हो कालिक पुते चेहरे से शर्मिंदा
मना ले जश्न-ए-ज़िन्दगी
खाली या भरे होने का मत कर इंतज़ार
जीने के मौके नहीं आते बार बार
इस खुशबू की सांस ले
और गिन ले तारे हज़ार
यह चमकता दिन न आएगा
यह काली रात फिर न आएगी
एक ही जोश से
मना ले जश्न-ए-ज़िन्दगी
जश्न-ए-ज़िन्दगी
जश्न-ए -बहार
साँसों का मेला
धडकनों की पुकार
खून का दौड़ना
और रगों का खुमार
खुदा की यह सारी बंदगी
मना ले मौला के नाम
जश्न-ए-ज़िंदगी
जश्न-ए-ज़िंदगी
जश्न-ए-ज़िंदगी!!
1 comment:
alwys excellent from my side...
bus aise hi likhte raho..
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