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सारथी कृष्ण ही था बस क्या
संजय का क्या हुआ
उसे क्यूँ भूल गए हम
वोह तो था अंधे ध्रितराष्ट्र का एकमात्र दिया
कौरवों के मतिभ्रष्ट खेमे में
एक मात्र स्तम्भ था संजय
मूक था, पर सत्य था संजय
कर्म बद्ध था पर, चेत था संजय
अकेला था पर, जीवित था संजय
सोयी आत्मा का स्पंदन था संजय
अन्धो की लाठी था संजय
सेवा बद्ध था पर दूरदर्शी था संजय
सब ओर घोर पापाचार हो
सब ओर तू घिरा हो मूर्छित आत्माओं से
तू बन जा संजय
कीचड़ हो हर ओर दलदल हो घनघोर
तू हो जा कमल रुपी संजय
विवेक का धारक होजा तू भी संजय
तम को दूर भगाता दीपक हो जा संजय
शत शत नमन संजय
दंडवत तुझे संजय
संजय!
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