Dreams

Monday, March 28, 2011

Two weeks it is! Copyright ©


she asked me if i could give her
two weeks off
two weeks of my presence
in her life
so that she could get answers
to the questions which arose
when i stepped into her life
and she froze
questions which would give her
some directions
answers which would clear the
distractions
and then she left
left for a cause so big
she was convinced
she HAD to dig


and here i am
waiting for the two weeks to get over
for the answers which she said she would get
the assumed serenity i have on my face
could become pandemonium
the placidity in my soul
could become a storm
the answers might make the sky fall
or they might make our love stand tall
curled anticipation
covered anxiety
might all unfurl
i could bleed
or it could plant a new seed
so I wait
wait till it unfolds


whenever paths cross like this
there are questions
and answers which may not
entirely be satisfying
its imperative though, to chose
in the cross roads
than indecisively dying


so i wait for the two weeks to be over
either there will be sunshine
or stormy clouds will hover
my patience can walk me through
even though the heart is now pounding
it may resound of symphonic cymbals sounding
and i wait eagerly for this
if two weeks it is
then two weeks it is
two weeks it is!

Sunday, March 27, 2011

और ऊपर जाना है अभी ! Copyright ©


और ऊपर जाना है अभी
आसमान पाना है अभी
पाँव ज़मीन पे ही रहें मेरे मौला
आसमान तक ध्वज लहराना है अभी



निगाहें पतंगों की
उड़ान को ही देखे हरदम
कर्मठ हाथ थामे मांजा
चरखी के तनाव
को ढील बनाना है अभी
और ऊपर जाना है अभी


सांसें बिजली की गर्जन से ऊंची हों
ऐसा स्वास चढ़ाना है अभी
आसमान की ऊँचाई तक गरज पहुंचे
पर सबके दिल में उतर जाना है अभी
और ऊपर जाना है अभी


रौशन सूरज की आँखों में
आँख डालके चमकने का चस्का जो है
उस जलते सूरज को जलाना है अभी
चाँद की चांदनी को शर्माना है अभी
और ऊपर जाना है अभी


ब्रह्माण्ड से भ्रम मिटाना है अभी
स्व को ब्रह्म बनाना है अभी
क्षितिज पार जो मृगत्रिष्णा का सागर है
उस जल को सरोवर बनाना है अभी
और ऊपर जाना है अभी


भय को भयभीत बनाना है अभी
द्वेष को प्रेम बनाना है अभी
भेद भाव का मेल कराना है अभी
क्रोध को स्नेह बनाना है अभी
बहुत दूर जाना है अभी
और ऊपर जाना है अभी
और ऊपर जाना है अभी!

Saturday, March 26, 2011

GREASE! Copyright ©


this oily surface
on this existence of mine
each layer spread with
the darkness of grime
every event leaves a new layer
always...an un-answered prayer
this grease which has
layered itself on my soul
nothing can wipe it away
no acid.... no base
i am just locked inside
my greasy case





and they ask me why i am so rude
so vane and so crude
that why i always run away
and keep love at bay
well what else do I do
these horrifying murals
on the wall of my soul
look at me all the time
when these ghosts
i constantly battle
come alive and rattle


i tried to wipe this off of me
a number of occasions
but it seems to get thicker
creating abrasions
Oh! this grease
this grease of pain
this grease of constant disdain
this grease of betrayal
grease of pretensions
this grease , this unease
wipe it away someone
wipe it please
wipe it please
wipe it please

Friday, March 25, 2011

आज की ताज़ा खबर !Copyright ©


भ्रूण था जो
आज वोह प्रस्फुठित हुआ है
कल आज में परिवर्तित हुआ है
कल की बासी सांस
आज सुगंधों की बेला है
कल का अंधापन
है आज की नयी नज़र
यह है आज की ताज़ा खबर


कल कमजोरी थी
आज काया शक्ति में है डूबी
कल जो कायनात शरमाई थी
वोह आज है आत्मविश्वास की भूमि
सूखा तट कल का
आज तरावट का स्रोत
कल का अँधेरा
आज की उजागर ज्योत
कल का कौतुहल
आज है सबर
यह है आज की ताज़ा खबर


यह हुआ कैसे?
आज नया कैसे?
कल पुराना कैसे?
निरंतर गतिमय जीवन में
नवीन विचार हर दिन लाना
हर दिन एक नयी धुन
हर दिन नया गाना
जीवन मृदंग है , वीणा भी
सुर साम्राग्यीं कोकिला का कंठ भी
जीवन केवल लक्ष्य नहीं , मार्ग भी
जीवन अन्धकार मात्र नहीं...है ज्वलंत भी
हर दिन , हर पल
नयेपन की अनुभूति
चाहे कपास हो या हो सूती


मैं हर दिन नया मैं हूँ
तुम हर पल नए तुम हो
अभ्युध्यान ही मानुष मस्तिष्क
के उत्थान की है एक डगर
यह ही है
हर दिन की ताज़ा खबर
कल की ताज़ा खबर
आज की ताज़ा खबर!

Wednesday, March 23, 2011

Oops ! she did it again ..Copyright ©


she did it again
and I let it be
who is to blame
her or me
i held her hand
didnt let it go
took a stand
and let it grow
but she did it again
left me and went


it is not the first time
this angst has scaled
its not the first time
i've asked for sunshine
and it has hailed
its not the first time
she has gone
and not the first time
my conviction has failed


i wonder why this happens
when my throat is dry
it never rains
even without wounds
it pains
i wonder why it is always
unreachable
wonder why i am perpetually unstable
why do i always want grapes
when i can drink the wine
why do i always get blunter
each time i want to shine


well never mind
i shall wake up tomorrow
leaving all this behind
try to reach the grapes
all over again
because i don't want the wine
i may be blunt
but i will one day shine
i love the sunshine
but i dont mind the rain
i won't give up trying
even if it is
Ooops! she did it again!

Wednesday, March 16, 2011

अब वोह बात नहीं रही...Copyright ©


अब वोह बात कहाँ रही
अब वोह धारा न बही
जो हमे लुभाती थी
जो सारे दुःख हर ले जाती थी
रुलाती थी और हसाती थी
अब वोह बात कहाँ गयी




जिसने मौन की ध्वनि बजायी
प्रशांत की गहराई नपवाई
दृढ़ता का राग़ सुनाया
उम्मीद की लहर दौडाई
उसकी चमक कहाँ गयी
अब वोह बात नहीं रही


दर्शनशास्त्र को हमारी भाषा
में हमको ही सिखाया
सोते हुए को चेत कराया
अंतर मन में दबे ब्रह्मा को
अपनी लौ से जलाया
अब वोह लौ नहीं रही


सोचा था सोच के सागर से
बहुमूल्य मोती यह ले आएगा
स्वयं से पुनः हमारी भेंट यह करवाएगा
अब तो ज़ंग लगे बस है
म्यान में यह तलवार
न अब यह मीठी कटारी
न अब इसका कोई प्रहार
इतिहास में अंकित न है
न रही अब कोई धार


कहाँ गया वोह दृढ संकल्प
कहाँ गए वोह गगंचुम्भी इरादे
कहाँ गया भाषा का वोह अध्नान्गापन
कहाँ गयी वोह बेशर्मी
कहाँ गयी वोह मादकता
और कहाँ गयी वोह विश्वास की गर्मी


आएगा, विश्वास हमे है
क्यूँकी जो दिखलाया था वोह झूठ नहीं था
हमे अधनंगा कर दिया था
पर नग्न रूप में दिया था मौका
परब्रह्म में मिला दिया था


अब और तब की बात नहीं है
बात जो है वोह तो जम गयी
कोई कहे बात नहीं रही पर
हम तो बोले
बात एकदम गलत कही
"वोह" बात ही है जो रह गयी
"वोह" बात ही है जो रह गयी
"वोह" बात ही है जो रह गयी!

Tuesday, March 15, 2011

दाम Copyright ©


मानो या ना मानो
दाम तो सबका होता भैया
कोई बिकता एक अठन्नी
कोई सौ रुपया


भावनाओं का मोल न होता
बोला एक दिन कोई
फिर एक दिन दिल के हाथो बिक गया
बोला, प्यार से मेरी जागी किस्मत सोयी



आस्था का मोल न कोई
जब मन में बसते राम
राम रहीम को बेच बेच के
देखो लड़े गए कितने संग्राम


रिश्तों का मोल न होता
न होता कोई दाम
बहु-"मूल्य" का ठप्पा लगा कर
लगा दिया रिश्तों पे भी पूर्ण विराम


समय तो निरंतर भागे
लगाओ उसका मोल
मैं बोला आज तो समय भी बिकता है भैया
खनके मुद्रा जब गोल गोल


जब सबका मोल ही लगा दिया तो
हो गया जब सब बिकाऊ
तो क्या देवों की वाणी
क्या संतों के खडाऊ


तो तुम्ही बतादो भैय्या
क्या ऐसा जिसका मोल है न , और है न दाम
जिसे खरीदा , बेचा जा न सके
न मिले किसी को ईनाम


उम्मीद ही है जो तुम खरीद न पाओ
न बेचीं जाए न उसका कोई दाम
न मिले विरासत में
न मिले किसी को ईनाम


उम्मीद बनाये रखने में न होती जेबें खाली
न होती जवाबदारी न होते सवाली
उम्मीद सुनहरे सूरज की
उम्मीद भरी बच्चे की किलकारी
उम्मीद परिवर्तन की
उम्मीद जीवन की
और उम्मीद की पिचकारी
और उम्मीद इस यह पंक्तियाँ
तुम तक पहुंचे तब
जब तुम्हे लगे लुट गयी दुनिया सारी
जब तुम्हे लगे लुट गयी दुनिया सारी
जब तुम्हे लगे लुट गयी दुनिया सारी

Friday, March 11, 2011

मापदंड ! Copyright ©


किसने बनाया तराजू
मैं उसको ढूंढ रहा
नाप तोल के ठेकेदारों
को समर्पित यह पंक्तिया कर रहा



जब मैं तुम्हारे न्यायलय में
अधनंगा प्रस्तुत हुआ
तब तुम चीर हरण से न हिचकिचाए
तुम्हारे चौसर में हारा तो
मुझे द्रौपदी बनाने से न तुम शर्माए
अनेकों मापदंड हैं तुम्हारे भैया
हर किसी की चाल तुम नापो
कोई सीधा चलाया तुमने
किसी को केवल ढैया
पर यह प्यादा कब बाद बना
तुम्हारी इस बिसात में
कब शह दे गया तुम्हे
एक सटीक चाल से
तुम न भाप पाए



मापदंड बनाने वाले सुन लो मेरी दलील
नाप सको तो नाप के दिखाओ यह प्रशांत असीम
नापो गहराई सागर की और
लगाओ आकाश की ऊँचाई का अनुमान
ढालो सूरज को सांचे में
जकड़ो समय की चाल
जब जुड़ जाएँ यह आंकड़े
तब लगाना मुझे पुकार
तब देखना मेरे अनगिनत चेहरे
तब देखना मेरे भिन्न प्रकार



मापदंड में खरा न उतरा तुम्हारे
अब हुआ मुझे ज्ञान
क्युंकी तराजू तुम्हारा बिगड़ा था
नाप सका न मेरी उड़ान
मेरे पंखों के रंगों की
चमक से हो गयीं तुम्हारी आँखे अंधी
और तुमने रखा मुझको
अपने इस मापदंड का बंदी
मैं तो था स्वतंत्र पंछी
तुम्हारे पिंजरों से परे
इसीलिए तुम्हारे हुक्मरान
थे मुझसे डरे डरे


मैं अब तोड़ चुका हूँ
बेडियान इन मापदंड़ो की
जलती लौ सा स्वतंत्र हूँ मैं
न फ़िक्र मुझे पतंगों की
तो मापदंड बनाने वालो
रखो इसको याद
पिंजरों में न रख पाओगे
मेरे जैसो की उमंगें
मेरे जैसो के
अन्दर की आग
अन्दर की आग
अन्दर की आग!

Thursday, March 10, 2011

मौत ...तेरी महफ़िल !Copyright ©


महफ़िलें तो बहुत देखी हैं
पर तुझ जैसी न देखी सनम
शायर तो बहुत देखे
पर न थी तुझ जैसी कोई नज़्म





तेरी महफ़िल में कदम रखने की
ख्वाहिश लिए ही पैदा हुए हम
मालूम था एक दिन इस महफ़िल में ही
रखेंगे कदम

ढलती शाम ,ज़िंदगी की
का न हम करेंगे इंतज़ार
महफ़िल रंगीन कर दें
यह ही ख्वाहिश हमारी बार बार

तेरे हाथों से जाम पीने का,
जवानी में जो है मज़ा
ढलती उम्र में न हम देंगे
खुद को यह सजा

सच कहा किसी ने
क्या नज़ा की तकलीफों में मज़ा
जब मौत न आये जवानी में
क्या लुत्फ़ जनाज़ा उठने का
हर गाम पे जब मातम न हुआ

तो ए मौत की महफ़िल
तेरे न्योते को हैं हम बेसब्र
बता के मत आना
रखना आखिर तक हमे बेखबर
फिर देखना जलवा हमारा, मेरे हमसफ़र

तेरी महफ़िल में जब हम उतरेंगे
शान देखना
तेरे हाथों से जाम जब हम चखेंगे
नशा देखना
तू साकी हो , हाथ में जाम थामे
हमारे अदरों पे मुस्कान देखना

क्या मंज़र होगा तेरी महफ़िल में
न होंगे हम होश में
तू मेज़बान
और हम तेरे आगोश में

तो तेरे न्योते का है इंतज़ार
के किस दिन डालेगी तू
अपने इस मेहमान पर हार
तेरी मेहमान नवाजी को
तैयार है बंद
लगा ले गले
मेरी इस ख्वाहिश को
न कर शर्मिंदा
न कर शर्मिंदा
न कर शर्मिंदा

Saturday, March 5, 2011

महत्व Copyright ©


महत्व कैसे दिया जाए किसी को
उपाधि से, पारितोषिक से
सराहना से कि इतिहास में
स्थान से
किसी का महत्व भांपें कैसे
फिर नापें कैसे
फिर सराहें कैसे
महत्व जताएं कैसे




किसका महत्व हो इस जीवन में
माता का? पिता का
मित्रों का ? ईश का
या महत्व की मेहेत्ता का
महत्व दें दाता को
या भाग्य को
मस्तिष्क को
या ह्रदय को
प्रसन्न भाव को
कि नासूर से घाव को
महत्व दें राह को
कि अंतिम पड़ाव को




मेरे स्वयं का क्या महत्व है
किसी के जीवन में
मेरे जीवन में
धरती में
आकाश में
इस पूरी श्रृष्टि
इस पूरे ब्रह्माण्ड में




मेहेत्व की अनुभूति
जन्म पे नहीं
मृत्यु पे होती
किसी का महत्व विशाल
किसी की मेहेत्ता छोटी




मेरा महत्व जग जान रहा
आकाश चिल्ला रहा
धरती पुकार रही
ब्रह्माण्ड सुना रहा
पर वोह क्या है
वोह तो मेरा पार्थिव शरीर बोलेगा
मेरी चिता की धधकती आग बोलेगी
कि मेरा क्या महेत्व था




विडम्ब्ना यह ही है
कि मेहेत्व का हरदम
तब होता आभास
जब चला जाए कोई
जब रुक जाए सांस



तो स्वयं का महत्व जताओ मत
महत्वपूर्ण हूँ..बताओ मत
ढूँढने दो इतिहास को
तुम्हारा महत्व
करने दो एहसास जग को
तुम्हारा महत्व
कर्म करो और पकड़ो धर्म का धागा
तुम्हारा महत्व कहीं नहीं भागा
कर्म्बद्धा हो जाओ
और पहचानने दो इस जग को
तुम्हारा
महत्व
तुम्हारा महत्व
तुम्हारा महत्व