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और ऊपर जाना है अभी
आसमान पाना है अभी
पाँव ज़मीन पे ही रहें मेरे मौला
आसमान तक ध्वज लहराना है अभी
निगाहें पतंगों की
उड़ान को ही देखे हरदम
कर्मठ हाथ थामे मांजा
चरखी के तनाव
को ढील बनाना है अभी
और ऊपर जाना है अभी
सांसें बिजली की गर्जन से ऊंची हों
ऐसा स्वास चढ़ाना है अभी
आसमान की ऊँचाई तक गरज पहुंचे
पर सबके दिल में उतर जाना है अभी
और ऊपर जाना है अभी
रौशन सूरज की आँखों में
आँख डालके चमकने का चस्का जो है
उस जलते सूरज को जलाना है अभी
चाँद की चांदनी को शर्माना है अभी
और ऊपर जाना है अभी
ब्रह्माण्ड से भ्रम मिटाना है अभी
स्व को ब्रह्म बनाना है अभी
क्षितिज पार जो मृगत्रिष्णा का सागर है
उस जल को सरोवर बनाना है अभी
और ऊपर जाना है अभी
भय को भयभीत बनाना है अभी
द्वेष को प्रेम बनाना है अभी
भेद भाव का मेल कराना है अभी
क्रोध को स्नेह बनाना है अभी
बहुत दूर जाना है अभी
और ऊपर जाना है अभी
और ऊपर जाना है अभी!
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