महफ़िलें तो बहुत देखी हैं
पर तुझ जैसी न देखी सनम
शायर तो बहुत देखे
पर न थी तुझ जैसी कोई नज़्म
तेरी महफ़िल में कदम रखने की
ख्वाहिश लिए ही पैदा हुए हम
मालूम था एक दिन इस महफ़िल में ही
रखेंगे कदम
ढलती शाम ,ज़िंदगी की
का न हम करेंगे इंतज़ार
महफ़िल रंगीन कर दें
यह ही ख्वाहिश हमारी बार बार
तेरे हाथों से जाम पीने का,
जवानी में जो है मज़ा
ढलती उम्र में न हम देंगे
खुद को यह सजा
सच कहा किसी ने
क्या नज़ा की तकलीफों में मज़ा
जब मौत न आये जवानी में
क्या लुत्फ़ जनाज़ा उठने का
हर गाम पे जब मातम न हुआ
तो ए मौत की महफ़िल
तेरे न्योते को हैं हम बेसब्र
बता के मत आना
रखना आखिर तक हमे बेखबर
फिर देखना जलवा हमारा, मेरे हमसफ़र
तेरी महफ़िल में जब हम उतरेंगे
शान देखना
तेरे हाथों से जाम जब हम चखेंगे
नशा देखना
तू साकी हो , हाथ में जाम थामे
हमारे अदरों पे मुस्कान देखना
क्या मंज़र होगा तेरी महफ़िल में
न होंगे हम होश में
तू मेज़बान
और हम तेरे आगोश में
तो तेरे न्योते का है इंतज़ार
के किस दिन डालेगी तू
अपने इस मेहमान पर हार
तेरी मेहमान नवाजी को
तैयार है बंद
लगा ले गले
मेरी इस ख्वाहिश को
न कर शर्मिंदा
न कर शर्मिंदा
न कर शर्मिंदा
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