Tuesday, March 15, 2011
दाम Copyright ©
मानो या ना मानो
दाम तो सबका होता भैया
कोई बिकता एक अठन्नी
कोई सौ रुपया
भावनाओं का मोल न होता
बोला एक दिन कोई
फिर एक दिन दिल के हाथो बिक गया
बोला, प्यार से मेरी जागी किस्मत सोयी
आस्था का मोल न कोई
जब मन में बसते राम
राम रहीम को बेच बेच के
देखो लड़े गए कितने संग्राम
रिश्तों का मोल न होता
न होता कोई दाम
बहु-"मूल्य" का ठप्पा लगा कर
लगा दिया रिश्तों पे भी पूर्ण विराम
समय तो निरंतर भागे
लगाओ उसका मोल
मैं बोला आज तो समय भी बिकता है भैया
खनके मुद्रा जब गोल गोल
जब सबका मोल ही लगा दिया तो
हो गया जब सब बिकाऊ
तो क्या देवों की वाणी
क्या संतों के खडाऊ
तो तुम्ही बतादो भैय्या
क्या ऐसा जिसका मोल है न , और है न दाम
जिसे खरीदा , बेचा जा न सके
न मिले किसी को ईनाम
उम्मीद ही है जो तुम खरीद न पाओ
न बेचीं जाए न उसका कोई दाम
न मिले विरासत में
न मिले किसी को ईनाम
उम्मीद बनाये रखने में न होती जेबें खाली
न होती जवाबदारी न होते सवाली
उम्मीद सुनहरे सूरज की
उम्मीद भरी बच्चे की किलकारी
उम्मीद परिवर्तन की
उम्मीद जीवन की
और उम्मीद की पिचकारी
और उम्मीद इस यह पंक्तियाँ
तुम तक पहुंचे तब
जब तुम्हे लगे लुट गयी दुनिया सारी
जब तुम्हे लगे लुट गयी दुनिया सारी
जब तुम्हे लगे लुट गयी दुनिया सारी
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