Saturday, March 5, 2011
महत्व Copyright ©
महत्व कैसे दिया जाए किसी को
उपाधि से, पारितोषिक से
सराहना से कि इतिहास में
स्थान से
किसी का महत्व भांपें कैसे
फिर नापें कैसे
फिर सराहें कैसे
महत्व जताएं कैसे
किसका महत्व हो इस जीवन में
माता का? पिता का
मित्रों का ? ईश का
या महत्व की मेहेत्ता का
महत्व दें दाता को
या भाग्य को
मस्तिष्क को
या ह्रदय को
प्रसन्न भाव को
कि नासूर से घाव को
महत्व दें राह को
कि अंतिम पड़ाव को
मेरे स्वयं का क्या महत्व है
किसी के जीवन में
मेरे जीवन में
धरती में
आकाश में
इस पूरी श्रृष्टि
इस पूरे ब्रह्माण्ड में
मेहेत्व की अनुभूति
जन्म पे नहीं
मृत्यु पे होती
किसी का महत्व विशाल
किसी की मेहेत्ता छोटी
मेरा महत्व जग जान रहा
आकाश चिल्ला रहा
धरती पुकार रही
ब्रह्माण्ड सुना रहा
पर वोह क्या है
वोह तो मेरा पार्थिव शरीर बोलेगा
मेरी चिता की धधकती आग बोलेगी
कि मेरा क्या महेत्व था
विडम्ब्ना यह ही है
कि मेहेत्व का हरदम
तब होता आभास
जब चला जाए कोई
जब रुक जाए सांस
तो स्वयं का महत्व जताओ मत
महत्वपूर्ण हूँ..बताओ मत
ढूँढने दो इतिहास को
तुम्हारा महत्व
करने दो एहसास जग को
तुम्हारा महत्व
कर्म करो और पकड़ो धर्म का धागा
तुम्हारा महत्व कहीं नहीं भागा
कर्म्बद्धा हो जाओ
और पहचानने दो इस जग को
तुम्हारा
महत्व
तुम्हारा महत्व
तुम्हारा महत्व
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