Monday, April 4, 2011
सम्राट ! Copyright ©
हवाओं के रुख को
अपनी साँसों से जो बदल दे
सूर्या के तेज को
जो मूह खोल के निगल दे
कर्म, परित्याग और सद्भावना
का जो हो प्रतीक
जिसका लक्ष्य प्रगति हो
और हो निशाना सटीक
लौह स्तम्भ सा खड़ा हो
जो अपनी प्रतिज्ञां पे
जिसे पुरुषार्थ से न हो भय
ना हो हार की लज्जा
जो प्रसन्न हो धोती मात्र में
नहीं भाती जिसे रूप सज्जा
ऐसा चहुंमुखी दूरदृष्टि
का हो जो धारक
जो हो अपने राज्य का
जीवित स्मारक
जिसका ह्रदय हो इतना विराट
केवल वह ही कहलाये सम्राट
राजा बहुत आये और चले गए
पानी के बुलबुले से
इतिहास में लुप्त हुए
नाम उनका रहा केवल अंकित
जिनकी गरिमा और पराक्रम से
ही हुआ जिनका नाम सुशोभित
जिन्हें भय न था सेनाओं का
न था भय परिवर्तन का
जो परिवर्तन की लहरों के
साथ बहे
पर उतने ही अचल , उतने नी
समर्पित रहे
ऐसे ही राजाओं की सुनी इतहास ने
गुर्राट
और स्वर्ण अक्षरों से किया अंकित
उन्हें सम्राट
सम्राट पैदा नहीं होते
ना ही पाए जाते
सम्राट तो ह्रदय से होते हैं
सम्राट तो पराक्रम से होते हैं
विश्व उनपे दोष डालता है
वोह विश्व का बोझ ढोते हैं
सम्राटों वाली बात आज रही नहीं
यह भ्रम है
सम्राट आज भी हैं
परन्तु भूल गए हैं
अपने अन्दर के मानव में
उस सम्राट को भूल गए हैं
जगाओ उस सम्राट से ज्वालामुखी को
जलो तपस्या की अग्नि में
कवच धारण करो
और कूच करो अश्वमेध रचने
उस अश्वा पे निकलोगे तो
होगी अनुभूति
सम्राटों के वेग की
सम्राटों के तेज की
सम्राटों की दृष्टि से
जग तुम जब देखोगे
होगी अनुभूति
देवाधिदेव की
तो त्यागो बिल्ली का शर्मीलापन
बनो सिंह
निकलो अपनी मांदों से
दिखलाओ अपना रूप विराट
जंगली अश्वा सा हिन्हिनाओ
और बन जाओ तुम भी
सम्राट
बन जाओ सम्राट
बन जाओ सम्राट
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