Thursday, April 7, 2011
पवनहंस ! Copyright ©
पंख फैलाये पेंग बढ़ाये
आकाश की लहरों में गोते खाए
स्वतंत्र होके उड़ता जाए
पवनहंस सा मन ये मोरा
बेड़ियों की कड़ी मरोड़े
परिमाणों और सीमाओं की कमर यह तोड़े
पगडंडियों पे अपनी छाप यह छोड़े
ध्यानमग्न सा उड़ता जाए
पवनहंस सा मन ये मोरा
काले काले बादल लांघे
हरदम नीला अम्बर मांगे
कैसे सरपट क्षितिज को भागे
चंचल मृग सा दौड़ा जाए
पवनहंस सा मन ये मोरा
श्वेत रंग की चादर ताने
सतरंगी होने के ढूंढें बहाने
कैसी कैसी इच्छाएं न जाने
इच्छाएं जिनके हाथ नहीं
पर धारा के साथ बहीं
जो पवन को चीर के रख दें
सूर्या की आँखों में तक तक दें
कम्प्कपाये जिनसे देवों का मन
सिंह के जैसे गुर्रा जाए
पवनहंस सा मन ये मोरा
पवनहंस सा मन ये मोरा!
पवनहंस सा मन ये मोरा!
पवनहंस सा मन ये मोरा!
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