Tuesday, April 19, 2011
स्थिरता ~अब केवल मृत्यु पर! Copyright ©
जब से जन्मा तबसे मैं तो
सरपट ही भाग रहा
कभी किसी के नाक में दम
कभी आँगन मैंने बर्बाद किये
नटखट नटखट बोल बोल के
सारे रिपोर्ट कार्ड मेरे जब लाल किये
तब ही बोल दिया था जग को मैंने
तुमने अब अपने बुरे हाल किये
नहीं रुकुंगा नहीं थमुंगा
करलो जिसे जो करना है
स्थिरता तुमको हो मुबारक
मैंने गोले अपने दाग दिए
किशोर अवस्था में तो
माँ ने खड़े अपने हाथ किये
पिता ने भी न जाने
कितनी छड़ियों में अपने पैसे बर्बाद किये
उन्होंने शांत औलाद मांगी थी
मैंने बचपन में ही शंखनाद किये
ईश ने मुझको स्फूर्ती से नवाज़ा था
जग ने उद्दंद्ता समाजके न जाने
मेरे मूह पर कितने ही बंद द्वार किये
या तो टांग अड़ा दी मैंने उनपर
या सीना ठोक के प्रतिघात किये
यौवन आया , नाचे मोर
प्रेम के अंगूर चारो ओर
किसी ने बाँधा पल्लू में तो
किसी ने हाथों में हाथ दिए
किसी ने दिल को रौंदा और
किसी ने लम्बे वादों के प्रसाद दिए
टूटे दिल के टुकड़ों को मैंने
तोहफे में उनको ही प्रदान किये
इस सब कोलाहल और हल्ले के बाद
सोचा सबने कि स्थिरता आ जायेगी
अब तो अपनी नादानी को
संजीदगी के धागे में पिरोयेगा
उन्हें पता नहीं था मित्रों
यह कभी न थमने वाला स्पंदन है
यह ख़त्म कभी न होयेगा
यह धूमकेतु है निरंतर
जो काला आकाश अपनी रौशनी से धोएगा
जो बीते कल की कालिख को
सुनहरे कल में डुबोयेगा
जो तब तक गतिमय है
जब तक यमदूत उसे काँधे पे न ढोयेगा
स्थिरता तुम्हे मुबारक
यह तो बस स्फूर्ति और स्पंदन का स्रोत मात्र है
इससे शांत होने की उम्मीद न रखना
अब तो इसका शव ही
चुप होयेगा
अब तो इसका शव ही
चुप होयेगा
अब तो इसका शव ही
चुप होयेगा
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