अंतिम पंक्ति ढूंढ रहा था
अभिप्राय जीवन का बूझ रहा था
समय से पहले बूढा होके
लुटी जवानी पे
बेकार ही रूठ रहा था
दिशाहीनता थी फिर भी
अंत कैसा होगा यह सोच रहा था
प्रथम पृष्ट की प्रथम पंक्ति
पहला कदम और पहली शक्ति
यह होना था मेरा प्रारंभ
किस गूँज का हो शक्नाध
यह होना था जीवन का स्तम्भ
इन बीते सालों में
अंतिम पंक्ति की यह खोज
व्यर्थ तो नहीं गयी
पहले प्रथम पृष्ट की प्रथम पंक्ति
ढूँढने की सद्बुद्धि प्रकट हो गयी
अंतिम पग वो होगा जहाँ मैं
प्रथम पग बढ़ाऊँगा
चाहे ऊपर चाहे नीचे
यह उत्तर मैं प्रथम पृष्ट से ही
समझ पाउँगा
पहला पग हो मेरा ऐसा
जिसे भय न हो मृत्यु का
ऐसे, जैसे दूर गगन
में उड़ान भरता पंछी
मन में तूफ़ान हो तो भी
प्रशांत हो मुखचन्द्र पे
अंगद के जैसे जहाँ भी रख दूँ
हिला सके न कोई यह वज्र भी
प्रथम पृष्ट हो उम्मीद भरा
प्रथम पंक्ति में हो संसार बसा
प्रथम शब्द हो ब्रह्म
प्रथम अक्षर ..एक नया आरम्भ
पहली रचना ऐसी हो जिस से फूटे जीवन
हरे पत्ते हों, प्रस्फुटित अंकुर
छलके उसमे यौवन
द्वेष नहीं हो , न हो किसी बात की शंका
ज़ोर ज़ोर से बाजे विजय यात्रा का डंका
त्यौहार मनाये पहली पंक्ति
पह्का अक्षर बजाये ढोल
पहली रचना हो पूजा की थाल
और पहला शब्द लगाये रोली
ऐसे जैसे हो नयी दुल्हन की सुसज्जित डोली
ऐसी हो प्रथम रचना
ऐसा हो प्रथम बोली
उम्मीद दिलाये प्रथम पृष्ट
आस जगाये प्रथम रचना..
नया दौर हो नयी उमंगें
हो नयी संरचना
अंतिम पग की चिंता मत कर
अंत तो किसने देखा
प्रारंभ हो नयी यात्रा
जैसे होली का सा रंग है फैंका
अंतिम पंक्ति तो प्रथम प्रिथ्त
का ही सार है
प्रथम पृष्ठ में , प्रथम पग में
ही बसी है किस्मत, बसा सारा संसार है
बढ़ा आगे प्रथम पग को
पगडण्डी चाहे हो संकरी
घबरा मत प्यारे , शंका मत कर
मत पीछे देख
चढ़े जैसे पहाड़ पे
एकाग्रचित्त होके चढ़ती निडर बकरी
अंत तेरा खिल उठेगा
अंतिम पंक्ति जगमगाएगी
यदि प्रथम पृष्ट की प्रथम रचना तेरी
बाज़ी मार ले जायेगी
बाज़ी मार ले जायेगी
बाज़ी मार ले जायेगी !