ज्ञानार्जन की भूख सब में होती है
ब्रह्मज्ञान को पाने की उत्सुकता में
मानवता जीवन खो देती है
विधाता से मिलन की सबको होती चाह
पर उस चाह में भटक जाता मानुष राह
ब्रह्म ज्ञान का स्रोत ढूंढता मानव
मंदिर मस्जिद में जाता
उस ज्ञान की प्राप्ति के लिए पर
मानव बनना भूल जाता
ईश के समक्ष नतमस्तक होता
अर्घ्य चढ़ाता , पुष्पं की माला भी
व्रत , तीज त्यौहार मनाता पर
भौतिकता को अपने भीतर सजाता भी
कोई धारण करता समाधि
कोई करता यज्ञ भी
और अपने अन्दर की ज्योत भुला के
खो देता असल तथ्य ही
ऐसे ब्रह्म ज्ञान का अर्जन करके होगा क्या
जब मानवता ही खो गयी तो
ब्रह्मा, विष्णु , महेश से मिलने से होगा क्या
मानव आचरण का सामान्य ज्ञान न हुआ तो
भ्रह्म ज्ञान पाके होगा क्या
ब्रह्मा ज्ञान पाके होगा क्या?
धर्माशोक बनने से पहले
चंडअशोक होने की अनुभूति होना अनिवार्य है
बुद्ध होने से पहले
सामने सिद्धार्थ होके त्यागना अनिवार्य है
वाल्मीकि बनने से पहले अंगुलिमाल बनना ज़रूरी है
नहीं तो तुम्हारी रामायण अधूरी है
मानवता के सारे गुण अपना लो पहले
फिर उस ज्ञान की खोज करो
एक अनुयायी नागरिक बन जाओ पहले
फिर राजा भोज बनो
सद्भावना, मानवता प्रेम को अपनाओ पहले
इस सामान्य ज्ञान का आचरण धरो
फिर लगाओ समाधि , राम राम पुकारो और
ब्रह्म ज्ञानी बनो
पहले आस्था हो स्वयं से , फिर निकटतम
मानव से, समाज की पहले संरचना बदलो
फिर विधाता के द्वार खड़े हो और
आध्यात्म का चोगा धरो
पहले लहू बहाना बंद करो
फिर धर्म के नाम पे प्राण देने की बात करो
पहले भूखों का पेट भरो
फिर प्रसाद की इच्छा करो
पहले मन से कालिक पोंछो
घ्रिना, द्वेष भाव और संकुचितता की
फिर माथे पे कहीं तिलक धरो
इस सामान्य ज्ञान को पहले पूजो
फिर जाके ब्रह्म ब्रह्म चिल्लाओ
भूल न जाना इस सामान्य को
अपने आचरन में इस समाओ
इसकी गरिमा को पहचानो
और इसे परिपक्व बनाओ
ब्रह्म भी तुमसे यह ही चाहे
कि जिस रूप में उसने तुम्हे रचा है
पहले उसे पूर्णतः निभाओ
और जब मानवता की नीव धरो तुम
तब उसमे विलीन होने का दर्ज़ा पाओ
ब्रह्म ज्ञान से पहले
इस सामान्य ज्ञान को अर्घ्य चढाओ
ब्रह्म ज्ञान से पहले
इस सामान्य ज्ञान को अर्घ्य चढाओ
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