खोखली निगाहें
दूर क्षितिज पे न जाने क्या ढूंढती हैं
जिनमे खनकती थी बच्चों की किलकारी
वोह कान आज सन्नाटे में
न जाने क्या सुनते हैं
बिखरते मोतियों की गूँज
थक गयीं वो अश्कों की बूँद
धराशाही विश्वास
मृत सा आभास
न जाने क्या ढूंढते है
न जाने क्या ढूंढते हैं
रेगिस्तान में दूर दूर तक
बस गर्म हवा है
न जाने आत्मा कहाँ खड़ी है
न जाने आत्मविश्वास कहाँ पड़ा है
चरों ओर बस असंतुलन का रेगिस्तान पड़ा है
होंट सूख चुके हैं
पैर थक चुके हैं
मुरझाई उम्मीद है
कांपता ह्रदय भी
बहुत धड़क चुका है
बंद होती आँखें
पर फिर भी कुछ ढूंढ रहीं हैं
कुछ ढूंढ रहीं हैं
यात्रा का यह अंत तो न था
परिश्रम का यह फल तो न था
बहे लहू और छलके आंसुओं का
यह परिणाम तो न था
ऐसी नीरस तरुवर सी काया
नाउमीद सी छाया
मृत्यु को करीब आते देख
कर भी मुस्कुराया
फिर भी कुछ ढूंढ रही हैं
क्या ढूंढ रही है?
अचानक कुछ हुआ
क्या हुआ यह उसे भी न पता
आँखों में जीवन की चमक बस गयी
ह्रदय की आखरी धड़कन कस गयी
मृदंग सा शोर हुआ कानो में
और आत्मा में जैसे परमात्मा की
काया बस गयी
वो उठ खड़ा हुआ
लडखडाते पैरो पे....
पीठ जो झुक गयी थी, तन गयी
चेतना जो सो गयी थी…जग गयी
फेफड़ों से एक गहरी सांस ली उसने
और अचानक उसकी छाती विश्वास से भर गयी
वो चल पड़ा फिर से
यात्रा अधूरी थी... रह गयी
सूरज अब कुछ ढलने लगा था
बादल उसकी किरणों को छलने लगा था
हवाओं ने भी रुख मोड़ लिया था
और रेत भी संभल गयी
पुनः पथिक को राह अपनी
मिल गयी
मानो जान फूँक दी हो
मृत में और पार्थिव शरीर
उठ खड़ा था
रेंगती ज़िन्दगी दौड़ पड़ी थी
और जमा लहू उफन पड़ा था
निगाह तीखी थी
और चाल भी विश्वास भरी
मानो क्रांति सी आ गयी
मुश्किलें थी डरी डरी
उसके बाद सब इतिहास था
जो स्वर्ण अक्षरों में
छपा हुआ था
मानव शक्ति का एक और उदाहरण
दूर क्षितिज पे मुस्कुरा पड़ा था
पुनः जीत का सेहरा चमक उठा था
और ताने सीना विश्वास खड़ा था
कुछ ख़ास है मानव के विश्वास में
जो हर बाधा , हर मुश्किल का सीना
चीर सकता है
मौत से नज़रे मिला के उस पर हस सकता है
इसे जीवट कहते हैं
जब कुछ करने की शक्ति न हो
न हो अपने सपनो पे विश्वास
तब मानव में छुपी शक्ति
कराती है आभास
कि क्या है वो और कैसे....
मानव मन सर्वोपरि है
कैसे मंजिल
उतनी ही दूर है जितना वो चाहे
कैसे
वो सामने खड़ी है…
तेरे संकल्प और दृढ विश्वास
की भी यही शक्ति है
पहचान….
तेरे अन्दर भी जीवन जीने की
लालसा भरी है
पहचान....
जब सारी ऊर्जा मूक पड़ी हो
तब एक चिंगारी जागेगी
जो तेरे पूरे जीवन के प्रयास
को पहले त्यागेगी
और प्रज्वलित करेगी ऐसी ज्वाला
जिसे ईश भी नहीं झुकाने वाला
तो विश्वास कर स्वयं पे
और करता जा प्रयास
न छूटने पाए
वो जीने की आस
जीने की आस
जीने की आस!
No comments:
Post a Comment