ईद - दिवाली होती थी जहां
वहां भूख बेकारी मंडराती है
सत्ता की चाह में बेचारी
निर्दोष जनता मारी जाती है
कोई बताये मुझे
मैं हिन्दू हूँ या मुसलमान
धर्म क्या है मेरा
कौन मेरा ईश , कौन मेरा खुदा
धर्म के ठेकेदारों….सुन लो
मैं चीख रहा
खुदाए नमः
खुदाए नमः
अरे बहुत हो गया
खून खराबा
बहुत हो गयी रथ यात्रा
बहुत बाबरी टूट गए
बहुत हो गया काबा
लहू बहा है पानी जैसा
मानव मांस भी यहाँ बिका है
हिन्दू- मुस्लिम दंगो में
बस नेता का स्वार्थ सिका है
धर्म , आचरण होता होगा
मानवता का स्तम्भ भी
होता होगा ईश की ओर मार्ग भी
अब तो बस परचून जैसा बिका है
बेच बेच के राम को इन्होने
बाजारू बना दिया
रहमान, मोहोम्मद को भी
धंधे पे बैठा दिया
डर नहीं लगता तो न सही
पर लाज तो न लूटो तुम
ठेकेदार हो तो क्या हुआ
कम से कम न बेचो धर्म
न बेचो मानवता
न लाज और शर्म
बिनती तुमसे मेरी यह कि
रख दो भगवान् को यथास्थान पुनः
नारा मेरा……हरदम हरपल
खुदाए नमः
खुदाए नमः
खुदा खुदा करके पूरे देश
को खोद दिया
पूरी धरती को राम राम के लहू
से जोत दिया
शिव शिव करके , भगवा पेहेनके
पूरे भारत को लाल पोत दिया
मुसल्लम ईमान का दुरूपयोग करके
आतंक का रंग रोप दिया
बाहर वाले कैसे देंगे इज्ज़त
जब घर को खुद ने नीलाम किया
चौरासी हज़ार देवों को जब
सरे आम बदनाम किया
हिन्दू हूँ या मुसलमान
हूँ ईसाई या सिक्ख जी
हाड मॉस का मैं भी
पुतला हूँ मैं तुमसा ही
बहुत हो गया बंद करो अब
धर्म के नाम पे नरसंघार
गले लगाओ प्रेम बढाओ
डालो आपस में प्रेम का हार
गुहार नहीं है, धमकी समझ लो
अब तो न हो पायेगा…
बहुत सह लिया , बहुत देख लिया
अब न सुन्नी तुम्हारी
राजनैतिक बहस या जिरह
मेरी ओर से जोर जोर से..
खुदाए नमः
खुदाए नमः
खुदाए नमः!!!
1 comment:
अनुपम जी बहुत सुन्दर कविता|
यदि आप ब्लॉग का टेम्पलेट बदल लें तो पढ़ने में और भी आसानी होगी|कमेन्ट से वर्ड verification भी हटा दीजिये|
बहुत बहुत शुभकामनाएं|
ब्रह्माण्ड
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