ताश की गड्डी हो या
जीवन की बिसात
निकल के आते हरदम आगे
इक्का , बेग़म और बाद
चिड़ी का ग़ुलाम हो
या हुकुम की सत्ती
हरदम आखिर तक छुपी रहती
तुरुप की पत्ती
बड़े दिग्गज , बड़े खिलाडी
बाज़ी है जी यह जीवन गाडी
दुग्गी , तिग्गी को तो
पुछा भी नहीं जाता
देहला तक भी इस भीड़ में पिस जाता
कुछ बादशाह किस्मत लेके आते
बेगम भी यहाँ रौब जताते
ग़ुलाम भी खाते रहते हैं धक्के
मज़े तो लूट रहे हैं केवल इक्के
मुफलिस हो रही इस बाज़ी में फिर भी
चुप चाप मगर बैठे रहते हैं जी
बाज़ी पलट दें ….
ऐसे तुरुप के पत्ते
हमे भी बादशाहों की सी किस्मत चाहिए थी
बेगमों सा रौब भी
ग़ुलाम भी होते चाहे इन दरबारों में
पूरे तो होते ख्वाब भी
बगल से अपने वोह इक्का निकला एक दिन
रह गयी इक्के बन्ने की आस ही
उन गरीब पत्तो सा भी न था जीवन
कि किस्मत को कोस सकें
फिर क्या थे जिसका घमंड कर सकें
भिनभिनातीं ये बड़ी मधुमक्खियों
के सुनहरे छत्ते
समझ आ गया इक दिन
हम तो थे ..... तुरुप के पत्ते
बस उस दिन से इस बाज़ी को खेल चुके हैं
इक्कों, बादों ,बेगमो के ताप को सेक रहे हैं
खेल ने दो बाज़ी लोगों को
हम तो अभी चुप चाप खडें हैं
समय आएगा जब सही
तब हम निकलेंगे
बाज़ी पलट देने का हम दम रखते हैं
हमारे आगे बादों की हुकूमत घुटने टेकेगी
बेगमें भी त्याग देंगी अपनी रौब का सिक्का
घुलाम का न कोई अस्तित्व होगा
देखता भर बस रह जाएगा वो इक्का
बोलते फिर रह जायेंगे सब
अंगूर हैं खट्टे
क्यूँकी
हम हैं…तुरुप के पत्ते
ग़र कही इस गड्डी में
तू पिस गया है
जहाँ सोचा था
वहां से कही और बंट गया है
इन बड़े नामों की भीड़ में
तेरा अस्तित्व मिट रहा है
तो जान ले
तुझे बांटने वाला “वो” है
तुझे छांटने वाला “वो” है
वो ही खेल रहा तेरा दाव
तेरा उसने ही सोचा है पड़ाव
चमकने दे बादशाहों को
इक्कों को मुस्कुराने दे
थिरकने दे बेगमों को
ग़ुलामों को हकलाने दे
तू है लम्बी दौड़ का घोडा
बाज़ी पलट दे …..
ऐसा तुरुप का पत्ता
तुरुप का पत्ता
तुरुप का पत्ता
2 comments:
बहुत सुन्दर ...पूरा जीवनसत्य ताश के बावन पत्तों से समझा दिया|
ब्रह्माण्ड
(कमेन्ट बॉक्स से वर्ड वेरिफिकेशन हटा दीजिये)
7388685983
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