हाथ रंगे थे
लहू से उसके
पोंछ नहीं पाया था
मन से तो यह लाल रंग
उतार न पाया पर
हाथो के लिए वो
दस्ताने खरीद लाया था
उन दस्तानो के अन्दर
न जाने कितनी दास्ताने छुपी थीं
हाथो की रेखाएं बस
अन्धाधुन्ध खिंची थीं
वो हाथ जो मुलायम होते थे कभी
अब उनमे कठोर परत बस चढ़ी थी
जीवन रेखा बस अब मौत के द्वार खड़ी थी
दस्तानो ने उसके, उसका जीवन सब से छुपा दिया
पर मन की कालिक कैसे पोछे
स्वयं की नज़रों से तो उसने स्वयं को ही गिरा दिया
माँ के गर्भ से तो वो यह भाग्य लेने नहीं आया था
पर कर्मो ने उसके
उस गर्भ को लज्जित , बाजारू बना दिया
दस्ताने क्या करते वो तो बस चलता फिरता एक शव था
मन के दस्ताने कहाँ से लाता
मन तो अब एक भ्रम था
दस्ताने बहुत कुछ छुपा जाते हैं
लोगों के कुकर्म , लोगों के पाप
दबा जाते हैं
पर दस्ताने भी चिल्ला उठे इस बार
हे मानव , हे पापी
अपने पापों का भार हम पर मत डाल
तेरे घृणास्पद जीवन का बोझ हम क्यूँ ढोएँ
फल वो ही पाए , जो ऐसे बीज है बोये
वो मूक होके , हथेलियाँ आगे बढ़ाये
देख रहा था दुःख से
उसके पापी जीवन , उसकी जीवन धारा
का राज़ छुपाये खड़े थे दस्ताने चुप से
आंसुओं की धारा बहने लगी फिर
पोंछा पुनः उसने उन दस्तानो से
वो अश्क जो हथेली पे पड़ जाते तो
घाव पुनः हरे हो जाते
दस्ताने थे खड़े उसके
आंसुओं और लहू से रंगे हाथों के बीच
मानवता अभी बाकी थी उसके भीतर के शैतान
और बाहर के इंसान के दरमियान
चाहे थी अभी उसकी आँखें मीच
दस्ताने वो परत हैं जो
लाख छाले हों हाथों में
फिर भी उसे बचाते हैं
चाहे कितनी कालिक पुती हो मन में
मानवता न भुलाने देते हैं
उन दस्तानो को न समझना बिकाऊ
वो तो कवच हैं तुमारे
और शैतान के बीच
दस्ताने हैं कवच तुम्हारे
और शैतान के बीच!
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