Dreams

Monday, October 25, 2010

प्रश्न-उत्तर Copyright ©


प्रश्न....

क्यूँ, कैसे, कब, कहाँ

किस ओर और क्या जहाँ

उत्तर.....

सोच के सागर में डूबें हम

तो अनेक.....

प्रत्यक्ष पर कोई नहीं रहा देख

हर ओर उत्तर

हर ओर सुलझती गुत्थियां

हर ओर खुली खिड़कियाँ

हर बार

हर ओर

अनेक अनसुलझी गुत्थियां

हरदम प्रश्न की ऊँगली

और उत्तरों की मुठ्ठियाँ




मैं उत्तर की तलाश में

निकला था कभी

दृष्टि हरदम टिकी थी उसपे

हर क्यूँ, कैसे, कब की

छाप लगी थी जिसपे

परन्तु गलत था मैं

उत्तर हर दिशा में थे

विराजमान

उन उत्तरों की खोज में

भूत बिक चुका था

और अधर में लटका था

वर्त्तमान

इतने उत्तर तो मैंने मांगे न थे

जितने छोर मिले उतने तो

धागे भी न थे

मेरी सोच गलत थी

प्रश्न ढूंढना चाहिए था

वो प्रश्न जिस से

भूमंडल और ब्रह्माण्ड

में फैले उत्तरों की दिशा दिखती

और मेरे भूत , और वर्तमान

की जागीर ऐसे न बिकती

परन्तु ढूंढता रहा था

हर बार

हर ओर

अनेक अनसुलझी गुत्थियां

हरदम प्रश्न की ऊँगली

और उत्तरों की मुठ्ठियाँ




हम सब के जीवन में भी

उत्तर प्रत्यक्ष हैं

हरदम हम उनके

समक्ष है

हमें बस प्रश्न करना नहीं आता

हमें मार्ग इसीलिए नहीं मिलता

क्युंकी हम उत्तर की खोज में हैं रहते

और इसीलिए दिशाहीनता की लहर में हैं बहते

जीवन सार्थक बनाएं कैसे

प्रश्न चिन्ह ढूंढें पहले

उत्तर हर ओर हैं

नज़र घुमाएँ , सारी श्रृष्टि

उनसे सराबोर हैं

बस अपने जीवन का

ढूंढें जा प्रश्न

बन जा ब्रह्म, बुद्ध और कृष्ण

मत दोहरा वो गलती को मैं कर बैठा था

और

हर बार

हर ओर

अनेक अनसुलझी थी गुत्थियां

हरदम प्रश्न की ऊँगली थी

और उत्तरों की थी मुठ्ठियाँ

हरदम प्रश्न की ऊँगली थी

और उत्तरों की थी मुठ्ठियाँ

हरदम प्रश्न की ऊँगली थी

और उत्तरों की थी मुठ्ठियाँ