Dreams

Monday, November 1, 2010

तुम तो ....?Copyright ©


काश कि मैं जान सकता

कि मेरे मृत शरीर पे कौन रोयेगा

कौन पुष्प चढ़ायेगा

और कौन मेरी राख में

अपने अश्क दुबोयेगा

तुम तो रोओगी न?

मेरे निस्वार्थ प्रेम

के अथाह सागर में

खोओगी न?

मेरी राख़ की भस्म रमा के

मेरा नाम पुकारोगी न

मेरे निर्जीव पार्थिव शरीर

को चिता में समाते देख

अपना संसार खोओगी न?



या नहीं?



क्या मेरी निष्ठां बस मेरी थी

क्या मेरे हिस्से केवल

खाली झोली थी

या उस दामन में तुम्हारे

प्रेम के भी अंश थे

मैं कभी न समझ पाउँगा

क्या तुम्हारी चुप्पी

तुम्हारे अविश्वास का प्रमाण था

क्या तुम्हारे निर्दयी बोल

तिरस्कार का बाण था

क्या सारे सपने केवल मेरे थे

या ऐसा होना तुम्हारा चुनाव था



जीवन का सार तो मैं समझ गया था

सारे विष तो मैं शंकर की भाँती

पी गया था

उस अमृत की तलाश में

जो तुम्हारे मुख चन्द्र के तेज

से टपकता था

वो दैविक खुशबू

जो तुम्हारे देह से निकलती

और मेरी काया को प्रसन्ना कर देती

पर वास्तविकता कुछ और थी

तुम्हारी चुप्पी मेरे कानो में

दिन रात चीखती थी

उन तीखीं निगाहों से मेरी छाती

भेदती थी

मैं मान नहीं सकता कि वो

सब सत्य नहीं था

क्यूँकी मेरा जीवन

उसी आधार पे टिका था



एक बार बोलो तो सही

कि मेरा विश्वास सही था

एक बार गले तो लगा दो

कि मेरी निर्जीव आत्मा को

ठंडक पहुंचे

एक बार मुस्कुरा दो

एक बार लौट आओ ताकि

प्रेम के पौधे को मैं पुनः

सींच सकूँ

और इस इच्छा में प्राण दे सकूँ

कि तुम वो पौधा

अगले जन्म में बोओगी न

तुम तो रोओगी न?

मेरे निस्वार्थ प्रेम

के अथाह सागर में

खोओगी न?

मेरी राख की भस्म रमा के

मेरा नाम पुकारोगी न

मेरे निर्जीव पार्थिव शरीर

को चिता में समाते देख

अपना संसार खोओगी न?

1 comment:

Ghulam Kundanam said...

bahoot marmik rachna. kafi dard hai, bhavna ki Ganga bah rahi hai.